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पंचास्तिकाय प्रामृत हैं। उसके अभावके कारण सिद्धोंको निष्क्रियपना है। पुद्गलोंको सक्रियपनेका बहिरंग साधन परिणामनिष्पादक काल है, इसलिये पुद्गल कालकरणवाले हैं।
कर्मादिककी भांति कालका अभाव नहीं होता, इसलिये सिद्धोंकी भांति पुद्गलोंको निष्क्रियपना नहीं होता ।।९८।।
संता०-अथ द्रव्याणां सक्रियनिष्क्रियत्वं कथयति, जीवाः पुद्गलकाया सह सकिरिया हवंति-सक्रिया भवंति । कथं । सह । सह कोर्थः । बहिरंगसहकारिकारणैः सहिताः । ण य सेसान च जीवपुद्गलाभ्यां शेषद्रवयाणि सक्रियाणि । जीवानां सक्रियत्वे बहिरंगनिमित्तं कथ्यते । पोग्गलकरणा जीवा—मनोवचनकायव्यापाररूपक्रियापरिणतैनि:क्रियनिर्विकारशुद्धात्मानुभूतिभावनाच्युतै वैये समुपार्जिता: कर्मनोकर्मपुद्गलास्त एव करणं कारणं निमित्तं येषां ते जीवाः पुद्गलकारणा भयंते । खंदा-स्कंधा स्कंधशब्देनात्र स्कंधाणुभेदभित्रा द्विधा पुद्गला गृह्यन्ते । ते च कथंभूता: ? सक्रिया: । कै:कृत्वा ? कालकरणेहि-परिणामनिवर्तककालाणुद्रव्यैः खलु स्फुटं । अत्र यथा शुद्धात्मानुभूतिबलेन कर्मक्षये जाते कर्मनोकर्मपुद्गलानामभावात्सिद्धानां नि:क्रियत्वं भवति, न तथा पुद्गलानां । कस्मात् ? कालस्य सर्वदैव वर्णवत्या मूर्त्या रहितत्वादमूर्तस्य विद्यमानत्वदिति भावार्थ: ।।९८।। एवं सक्रियनिष्क्रियत्वमुख्यत्वेन गाथा गता।
हिंदी ता०-उत्थानिका-आगे द्रव्यों में क्रियावानपना और निःक्रियापना बताते हैं
अन्वयसहित सामान्यार्थ-( जीवा ) जीव और ( पोग्गलकाया) पुदलकाय ये दो द्रव्य (सह) बाहरी कारणोंके होनेपर ( सक्किरिया) क्रिया सहित ( हवंति) होते हैं ( सेसा) शेष चार द्रव्य (ण य) क्रियावान नहीं है । ( जीवा) जीव ( पुग्गलकरणा) पुगलोंकी सहायतासे और ( खंधा) पुद्गलोंके स्कन्ध ( खलु ) वास्तवमें ( कालकरणा दु) कालद्रव्यके कारणसे क्रियावान होते हैं।
विशेषार्थ-जीवोंने क्रिया रहित निर्विकार शुद्धात्माके अनुभवकी भावनासे गिरकर अपने मन, वचन, कायकी हलनचलन क्रियाकी परिणतियोंसे जो द्रव्यकर्म या नोकर्म पुद्गल एकत्र किये हैं वे ही जीवोंकी क्रिया कारण हैं तथा पुरलोंके स्कन्ध और परमाणु इन दो प्रकारके पुद्रलोके परिणमन होनेमें बाहरी कारण कालाणुरूप द्रव्य हैं, उनके निमित्तसे ये क्रियावान होते हैं। यहाँ यह तात्पर्य है कि जीव जो शुद्धात्मानुभवकी भावनाके बलसे कर्मोका क्षयकर तथा सर्व द्रव्यकर्म और नोकर्म पुदलोंका अभाव करके सिद्ध हो जाते हैं
और तब वे क्रियारहित होजाते हैं ऐसा पुगलोंमें नहीं होता है, क्योंकि काल जो वर्णादिसे रहित अमूर्तिक है सो सदा ही विद्यमान रहता है । उनके निमित्तसे पुद्गल यथासम्भव क्रिया करते रहते हैं ।।९८ ।।
इस तरह सक्रिय निःक्रियपनेकी मुख्यतासे गाथा समाप्त हुई।