Book Title: Panchastikay
Author(s): Kundkundacharya, Shreelal Jain Vyakaranshastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन उनमेंसे एक-एक स्वभावके वर्णनमें सात-सात भंग कहने चाहिये । वे इस तरह किस्यात् अस्ति, स्यात् नास्ति, स्यात अस्तिनास्ति, स्यात् अवक्तव्य इत्यादि या स्यात् एक, स्यात् अनेक, स्यात् एक-अनेक, स्यात् अवक्तव्य इत्यादि या स्यात् नित्य, स्यात् अनित्य, स्यात् नित्यानित्य, स्यात् अवक्तव्य इत्यादि । ये प्रत्येक के सात भंग इसी देवदत्तके दृष्टांतके समान होंगे। जैसे एक ही देवदत्त (१) स्यात पत्र है अर्थात अपने पिताकी अपेक्षा पुत्र है। (२) स्यात् अपुत्र है अर्थात् अपने पिताके सिवाय अन्यकी अपेक्षासे वह पुत्र नहीं है । (३) स्यात् पुत्र अपुत्र दोनों रूप है अर्थात् अपने पिताकी अपेक्षा पुत्र है तथा अन्य की अपेक्षा पुत्र नहीं है । (४) स्यात् अवक्तव्य है अर्थात् एक ही समय भिन्न-भिन्न अपेक्षासे कहें तो यह नहीं कह सकते हैं कि पुत्र अपुत्र दो रूप है । (५) स्यात् पुत्र है और अवक्तव्य है अर्थात् यह देवदत्त जब अपने पिताकी अपेक्षा पुत्र है तब भी एक समय में कहने योग्य न होनेसे कि पुत्र है या अपुत्र है यह अवक्तव्य भी है । (६) स्यात् अपुत्र अवक्तव्य है अर्थात् जब यह देवदत्त अपने पितासे अन्यकी अपेक्षा अपुत्र है तब ही एक समय में कहने योग्य न होनेसे अवक्तव्य है। (७) स्यात् पुत्र अपुत्र तथा अवक्तव्य है अर्थात् अपने पिताकी अपेक्षा पुत्र, परकी अपेक्षा अपुत्र तब ही एक समयमें कहने योग्य न होनेसे अवक्तव्य है । इसी तरह सूक्ष्म व्याख्यानकी अपेक्षासे सप्तभंगीका कथन जान लेना चाहिये । स्यात् द्रव्य है इत्यादि, ऐसा पढ़नेसे प्रमाण सप्तभंगी जानी जाती है। क्योंकि स्यात् अस्ति यह वचन सकल वस्तुको ग्रहण करनेवाला है इसलिये प्रमाण वाक्य है । स्यात् अस्ति एव द्रव्यम्ऐसा वचन वस्तुके एकदेशको अर्थात् उसके मात्र अस्तित्व स्वभावको ग्रहण करने वाला है इससे नय वाक्य है । क्योंकि कहा है "सकलादेशः प्रमाणाधीनो, विकलादेशो नयाधीन" इति वस्तुसर्वको कहनेवाला वचन प्रमाणके अधीन है और उसीके एक अंशको कहनेवाला वचन नयके अधीन है। अस्ति द्रव्यं यह दुःप्रमाण वाक्य है व अस्ति एव द्रव्यं यह दुर्नय वाक्य है। इस तरह प्रमाणादि रूपसे व्याख्यान जानना । यहाँ छः द्रव्योंके मध्यमेंसे सात भंगरूप जीवास्तिकाय नामका शुद्ध आत्मद्रव्य है वही ग्रहण करने योग्य है यह भावार्थ है ।।१४।।
इस तरह एक सूत्र से सप्तभंगीका व्याख्यान किया गया। इस तरह १४ गाथाओंमें पाँच स्थालोंसे पहली सात गाथाएँ पूर्ण हुई।
समय व्याख्या गाथा-१५ अत्रासत्प्रादुर्भावत्वमुत्पादस्य सदुच्छेदत्वं विगमस्य निषिद्धम् ।