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घड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन ____ अन्वयसहित सामान्यार्थ-( जीवोत्ति ) यह जीव जीनेवाला है, ( चेदा) चेतना सहित चेतनेवाला है, ( उवओगविसेसिदो ) उपयोग सहित है, ( पहू ) प्रभू है, (कर्ता ) करनेवाला है, (य भोत्ता) और भोगनेवाला है । (देहमत्तो) शरीर प्रमाण आकार धारी है ( णहिमुत्तो) निश्चयसे मूर्तिक नहीं है तथा ( कम्मसंजुत्तो) कर्म सहित ( हवदि ) है । इन नौ अधिकारोंको रखनेवाला है।
विशेषार्थ-यह आत्मा शुद्ध निश्चयनयसे सत्ता चैतन्य, ज्ञान आदि शुद्ध प्राणोंसे जीता है तथा अशुद्ध निश्चयनयसे क्षायोपशमिक तथा औदयिक भावरूपी प्राणोंसे जीता है तैसे ही अनुपचरित असत्भूत व्यवहार नयसे द्रव्यप्राणोंसे यथासंभव जीता है, जीवेगा व पहले जी चुका है इसलिये यह जीनेवाला है। यह आत्मा शुद्ध निश्चयनयसे शुद्ध ज्ञान चेतना तथा अशुद्ध निश्चयनयसे कर्म तथा कर्मफलरूप अशुद्ध चेतना चेतना सहित होनेसे चेतनेवाला है, निश्चयनयसे केवलदर्शन-केवलज्ञानमय शुद्ध उपयोगसे तथा अशुद्ध निश्चयनयसे मतिज्ञानादि क्षायोपशमिक अशुद्ध उपयोगसे युक्त होने के कारण उपयोगवान है, निश्चयनयसे मोक्ष तथा मोक्षके कारणरूप शुद्ध परिणामों में परिणमन करनेका सामर्थ्य रखनेसे तथा अशुद्ध निश्चनयसे संसार के कारण रूप अशुद्ध परिणामोंमें परिणमने का सामर्थ्य रखनेसे प्रभु है। शुद्ध निश्चयनयसे शुद्ध भावों का तैसे ही अशुद्ध निश्चयनयसे भावकर्मरूप रागादि भावोंका तथा अनुपचरित असद्भुत व्यवहार नयसे द्रव्यकर्म ज्ञानावरणादि और नोकर्म बाहरी शरीरादिका करनेवाला होनेसे कर्ता है, शुद्ध निश्चयनयसे शुद्ध आत्मासे उत्पन्न वीतराग परमानंदमय सुखका तैसे ही अशुद्ध निश्चयनयसे इंद्रियोंसे उत्पन्न सुख दुःखका तथा अनुपचारित असद्भूत व्यवहारनयसे सुख दुःख के साधक इष्ट व अनिष्ट खानपान आदि बाहरी विषयों का भोगनेवाला होनेसे भोक्ता है । निश्चयनयसे लोकाकाश प्रमाण असंख्यात प्रदेशप्रमाण होनेपर भी व्यवहारनयसे शरीरनामा नामकर्मके उदयसे उत्पत्र छोटे बड़े शरीर प्रमाण होनेसे स्वदेहमात्र है । निश्चयनयसे मूर्तिरहित है तथा कर्म रहित है तथापि असद्भूत व्यवहार नयसे अनादिकालीन कर्मबंध सहित होनेसे मूर्तिक है और कर्म संयुक्त है। इस तरह शब्दार्थ और नयार्थको कहा। अब मतोंकी अपेक्षा अर्थ कहते हैं। यहाँ जीवत्वका व्याख्यान चार्वाक मतानुसारी शिष्यकी अपेक्षासे
उद्धृतगाथार्थ-जो आत्मा और पुनर्जन्मको नहीं मानते हैं उनके लिये ये नव दृष्टांत हैं
(१) वत्स (बालक)-जन्मते ही माताका स्तनपान करने लगता है सो पूर्व संस्कारके बिना होना अशक्य है । इससे आत्मा और उसका पूर्व जन्म सिद्ध है।
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