Book Title: Panchastikay
Author(s): Kundkundacharya, Shreelal Jain Vyakaranshastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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षड्तव्य-पंचास्तिकायवर्णन संयोग ये स्थूल स्कन्ध हैं। ये कहीं कहीं लोकमें हैं, सर्व ठिकाने नहीं है । जहाँ इस अंतरंग बहिरंग दोनों सामग्रीका मेल होता है वहीं भाषावर्गणा शब्दरूपसे परिणमन कर जाती हैं, सर्व जगह नहीं। ये शब्द नियमसे भाषावर्गणाओंसे उत्पन्न होते हैं। इनका उपादान कारण भाषावर्गणा है, न कि यह शब्द आकाश. द्रष्यका गुण है। यदि यह शब्द आकाशका गुण हो तो कर्ण इंद्रियसे सुनाई न पड़े क्योंकि आकाशका गुण अमूर्तिक होना चाहिये । अथवा गाथामें जो 'उप्यादगो' शब्द है उससे यह लेना कि यह शब्द 'प्रायोगिक' है । पुरुष आदिकी प्रेरणासे पैदा होता है और 'णियदो' शब्द है उसे यह लेना कि शब्द 'वैश्रसिक' या स्वाभाविक है जैसे मेघ आदिसे होता है । अथवा शब्दके दो भेद हैं-भाषारूप और अभाषारूप । भाषात्मक शब्द दो प्रकार है-अक्षरात्मक और अनक्षरात्मक | जो संस्कृत प्राकृत आदि रूप आर्य व अनार्योंके वचनव्यवहारका कारण है सो अक्षरात्मक है। द्वीन्द्रिय आदिके शब्द तथा श्री केवली महाराजकी दिव्यध्वनि सो अनक्षरात्मक है। अब अभाषारूपको कहते हैं, इसके भी दो भेद हैंएक प्रायोगिक दूसरे वैप्रसिक । जो पुरुषके प्रयोगसे हो सो प्रायोगिक है जैसे तत वितत, घन, सुषिरादि बाजोंके शब्द । कहा है
वीणा, सितार आदि तारके बाजोंको तत जानना चाहिये । ढोल आदिको वितत, घंटा घडियाल आदिके शब्दको घन तथा बांसरी आदि फूंकके बाजोंको सुषिर कहते हैं । जो मेघ आदिके कारणसे शब्द होते हैं वे वैनसिक या स्वाभाविक हैं। तात्पर्य यह है कि यह सब त्यागने योग्य तत्त्व हैं इनसे भिन्न शुद्धात्मिक तत्त्व ग्रहण करने योग्य है ।।७९।।
इस प्रकार शब्द पुद्गलद्रव्यका पर्याय है। इस बातकी स्थापनाकी मुख्यतासे तीसरी गाथा कही। परमाणोरेकप्रदेशत्वख्यापनमेतत् । । णिच्चो गाणवकासो ण सावकासो पदेसदो भेदा । खंधाणं पि य कत्ता पविहत्ता काल-संखाणं ।।८।। नित्यो नानवकाशो न सावकाशः प्रदेशतो भेत्ता ।
स्कंधानामपि च कर्ता प्रविभक्ता कालसंख्यायाः ।।८।। परमाणुः स खल्वेकेन प्रदेशेन रूपादिगुणसामान्यभाजा सर्वदैवाविनश्वरत्वान्नित्यः । एकेन प्रदेशेन तदविभक्तवृत्तीनां स्पर्शादिगुणानामवकाशदानान्नानवकाशः । एकेन प्रदेशेन