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षद्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन इस तरह परमाणुओंमें पृथ्वी आदिकी जातिका भेद है इसको खंडन करते हुए दूसरी गाथा कही। शब्दस्य पुद्गलस्कंधपर्यायत्वख्यापनमेतत् ।
सद्दो खंधष्पभवो खंधो परमाणु-संग-संघादो । युढेसु तेसु जायदि सहो उप्पादिओ णियदो ।।७९।।
शब्दः स्कंधप्रभवः स्कंधः परमाणुसंगसङ्घातः। - स्पृष्टेषु तेषु जायते शब्द उत्पादिको नियतः ।।७९।।
इह हि बाह्यश्रवणेन्द्रियावलम्बितो भावेन्द्रियपरिच्छेद्यो ध्वनिः शब्दः । स खलु स्वरूपेणा-नंतपरमाणूनामेकस्कंधो नाम पर्यायः । बहिरंगसाधनीभूतमहास्कन्येभ्यः तथाविधपरिणामेन समुत्पद्यमानत्वात् स्कंधप्रभवः, यतो हि परस्पराभिहतेषु महास्कंधेषु शब्दः समुपजायते । किं च स्वभावनिर्वृत्ताभिरेवानन्तपरमाणुमयीभिः शब्दयोग्यवर्गणाभिरन्योन्यमनुप्रविश्य समततोऽभिव्याप्य पूरितेऽपि सकले लोके यत्र यत्र बहिरंगकारणसामग्री समुदेति तत्र तत्र ताः शब्दत्वेन स्वयं विपरिणमंत इति शब्दस्य नियतमत्पाद्यत्वात् स्कंधप्रभवत्वमिति । १७९।।
अन्वयार्थ-(शब्दः स्कन्धप्रभवः ) शब्द स्कन्धजन्य है । ( स्कन्धः परमाणुसङ्गसङ्गात: ) स्कन्ध परमाणुदलका संघात है, ( तेषु स्पृष्टेषु ) और वे स्कन्ध स्पर्शित होने-टकरानेसे ( शब्द: जायते) शब्द उत्पत्र होता है, (नियत: उत्पादिक: ) इस प्रकार वह ( शब्द ) नियतरूपसे उत्पाद्य है।
टीका-शब्द पुद्गलस्कन्धपर्याय है ऐसा यहाँ दर्शाया है।
इस लोकमें, बाह्य श्रवणेन्द्रिय द्वारा अवलम्बित, भावेन्द्रिय द्वारा जाननेयोग्य ऐसी जो ध्वनि वह शब्द है । वह [ शब्द ] वास्तवमें स्वरूपसे अनंत परमाणुओंके एक एकन्धरूप पर्याय हैं । बहिरंग साधनभूत ( बाह्य कारणभूत ) महास्कन्धों द्वारा तथाविध परिणामरूप ( शब्दपरिणामरूप ) उत्पन्न होनेसे वह स्कन्धजन्य है, क्योंकि महास्कन्ध परस्पर टकरानेसे शब्द उत्पन्न होता है । पुनश्च यह बात विशेष समझाई जाती है-एकदूसरेमें प्रविष्ट होकर सर्वत्र व्याप्त होकर स्थित ऐसी जो स्वभावनिष्पन्न हो ( अपने स्वभावसे ही निर्मित ) अनंतपरमाणुमयी शब्दयोग्यवर्गणाओंसे समस्त लोक भरपूर होने पर भी जहाँ जहाँ बहिरंगकारणसामग्री उदित होती है वहाँ-वहाँ वे वर्गणाएँ शब्दरूपसे स्वयं परिणमित होती हैं, इस प्रकार शब्द नियतरूपसे ( अवश्य ) उत्पाद्य हैं, इसलिये वह स्कन्धजन्य है ।।७९।।