Book Title: Panchastikay
Author(s): Kundkundacharya, Shreelal Jain Vyakaranshastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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षद्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन और ( इंदिय) पांच इन्द्रियों ( काया) पांच प्रकारके शरीर ( मणो य) और मन तथा (कम्माणि ) आठ कर्म ( जं अण्णं मुत्तं हवदि ) इत्यादि जो कुछ दूसरा मूर्तिक पदार्थ है (तं सव्यं) उस सर्वको ( पोग्गलं) पुद्गल द्रव्य ( जाणे) जानो।
विशेषार्थ-जिनको वीतराग अतीन्द्रिय सुखका स्वाद नहीं आता है उन जीवोंके भोगने-योग्य जो पांचों इन्द्रियोंके पदार्थ हैं, अतीन्द्रिय आत्मस्वरूपसे विपरीत जो पांच इन्द्रियाँ हैं, अशरीर आत्मपदार्थके प्रतिपक्षी जो औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस व कार्मण शरीर-ऐसे पांच शरीर हैं, मन सम्बन्धी विकल्पजालोंसे रहित शुद्ध जीवास्तिकायसे भिन्न जो मन है, कर्मरहित आत्मद्रव्यसे प्रतिकूल जो ज्ञानावरणादि आठ कर्म हैं तथा अमूर्तिक आत्मस्वभावसे विरोधी और जो कुछ दूसरे मूर्तिक द्रव्य हैं जैसे संख्यात, असंख्यात व अनंत पुदल परमाणुओंके स्कन्ध हैं उन सर्वको पुद्गल जानो ।।८२॥
इस तरह पुद्गलास्तिकायका संकोच करते हुए तीसरे स्थलमें गाथा एक कही। ऐसे पंचास्तिकाय छः द्रव्यके प्रतिपादक पहले महा-अधिकारमें दश गाथाओंतक पुद्गलास्तिकाय नामका पञ्चम अन्तर अधिकार समाप्त हुआ ।