________________
पंचास्तिकाय प्राभूत
२३५ केवलिसमुद्घातमें लोकव्यापी कभी होते हैं व वस्त्रादिके प्रदेश जो कभी फैलते सिकुड़ते रहेते हैं। इस तरह अभी ही फैला नहीं है किन्तु अनादिसे अनन्त कालतक लोकव्यापी स्वभावको रखनेवाला है । सहणि निश्चयसे अलंह प्रदेशको एक समूहमासे रखनेवाला है तथापि सद्भूतव्यवहारनयसे लोकाकाश प्रमाण असंख्यात प्रदेशोंका धारी है यह सूत्रका अर्थ है ।।८३॥ धर्मस्यैवावशिष्टस्वरूपाख्यानमेतत् ।
अगुरुग-लघुगेहि सया तेहिं अणंतेहिं परिणदं णिच्चं । गदि-किरिया-जुत्ताणं कारण- भूदं सय-मकज्जं ।।८४।।
अगुरुकलघुकैः सदा तैः अनंतैः परिणतः नित्यः ।
गतिक्रियायुक्तानां कारणभूतः स्वयमकार्यः ।।८४।। अपि च धर्मः अगुरुलघुभिर्गुणैरगुरुलघुत्वाभिधानस्य स्वरूपप्रतिष्ठत्वनिबंधनस्य स्वभावस्याविभागपरिच्छेदैः प्रतिसमयसंभवत्षट्स्थानपतितवृद्धिहानिभिरनंतैः सदा परिणतत्वादुत्पाद व्ययवत्त्वेऽपि स्वरूपादप्रच्यवनान्नित्यः । गतिक्रियापरिणतानामुदासीनाविनाभूतसहायमात्रत्वात्कारणभूतः । स्वास्तित्वमात्रनिर्वृत्तत्वात् स्वयमकार्य इति ।।८४।।
__ अन्ययार्थ—( अनंतै: तै: अगुरुकलघुकै: ) वह ( धर्मास्तिकाय ) अनंत ऐसे जो अगुरुलघु ( गुण,अंश ) उन-रूप ( सदा परिणतः ) सदैव परिणमित होता है, ( नित्यः ) नित्य है, ( गतिक्रियायुक्तानां ) गतिक्रियायुक्त ( द्रव्यों) को ( कारणभूतः ) कारणभूत ( निमित्तकारण ) है और ( स्वयम् अकार्य:) स्वयं अकार्य है।
टीका—यह, धर्मके ही शेष स्वरूपका कथन है ।
पुनश्च, धर्म [ धर्मास्तिकाय ] अगुरुलघु गुणोंरूपसे अर्थात् अगुरुलघुत्व नामका जो स्वरूपप्रतिष्ठत्वके कारणभूत स्वभाव उसके अविभाग प्रतिच्छेदोंरूपसे-जो कि प्रतिसमय होनेवाली षट्स्थानपतित वृद्धिहानिवाले अनंत हैं उनके रूपसे—सदैव परिणमित होनेसे उत्पाद-व्ययवाला है, तथापि स्वरूपसे च्युत नहीं होता इसलिये नित्य है, गतिक्रियारूपसे परिणमित होनेमें ( जीव-पुद्गलोंको ) उदासीन अविनाभावी सहायमात्र होनेसे गतिक्रयापरिणामको कारणभूत है, अपने अस्तित्वमात्रसे निष्पत्र होनेके कारण स्वयं अकार्य है ।।८४।। ___ सं० ता० अथ धर्मस्यैवावशिष्टस्वरूपं प्रतिपादयति-अगुरुगलहुगेहिं सदा तेहिं अणंजतेहि परिणदंअगुरुलघुकै: सदा तैरनंतैः परिणत: प्रतिसमयसंभवत्वट्स्थानपतितवृद्धिहानिभिरनंतरविभागपरिच्छेदै: परिणत: येऽगुरुलघुकगुणा: स्वरूपप्रतिष्ठत्वनिबंधनभूतास्तैः कृत्वा पर्यायार्थिकनयेनोत्पादव्ययपरिणतोपि द्रव्यार्थिकनयेन, णिच्चं-नित्यं । गतिकिरियाजुत्ताणं कारणभूद-गतिक्रियायुक्तानां कारणभूत: यथा