Book Title: Panchastikay
Author(s): Kundkundacharya, Shreelal Jain Vyakaranshastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 230
________________ २२६ षद्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन कितने अणुओं-परमाणुओंसे बने हैं ऐसा माप ) करनेमें अणुओंकी परमाणुओंकी अपेक्षा आती है, अर्थात् वैसा माप परमाणु द्वारा होता है। क्षेत्रके मापका एकैक ( एकम ) 'आकाशप्रदेश' है और आकाशप्रदेशकी व्याख्यामें परमाणुकी अपेक्षा आती है, इसलिये क्षेत्रका माप भी परमाणु द्वारा होता है। कालके मापका एकैक 'समय' है और समयकी व्याख्यामें परमाणुकी अपेक्षा आती है, इसलिये कालका माप भी परमाणु द्वारा होता है। ज्ञानभावके ( ज्ञानपर्यायके ) मापका एकैक “परमाणुमें परिणमित जघन्य वर्णादिभावको जाने उतना ज्ञान है और उसमें परमाणुकी अपेक्षा आती है, इसलिये भावका (ज्ञानभावका) माय भी परमाणद्वारा होता है। इस प्रकार परमाण द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावका माप करनेके लिये गज ( मीटर ) समान है।) एक एक परमाणुप्रदेश बराबर आकाशके भागको ( क्षेत्रको ) 'आकाशप्रदेश' कहा जाता है। वह 'आकाशप्रदेश' क्षेत्रका 'एकैक' है। [गिनतीके लिये, किसी वस्तुके जितने परिमाणको एक माप माना जाये, उतने परिमाणको उस वस्तुका एकैक कहा जाता है।] ३. परमाणुको एक आकाश प्रदेशसे दूसरे अनन्तर आकाशप्रदेशमें ( मंदगतिसे ) जाते हुए जो समय लगता है उसे 'समय कहा जाता है। संता०-अथ परमाणोरेकप्रदेशत्वं व्यवस्थापयति, णिच्चो-नित्यः । कस्मात् । पदेसदोप्रदेशतः परमाणोः खलु एकेन प्रदेशेन सर्वदैवाविनश्वरत्वान्नित्यो भवति । णाणवगासो-नानवकाश: किंत्वेनकेन प्रदेशेन स्वकीयवर्णादिगुणानामवकाशदानात्वावकाशः | ण सावगासो-न सावकाश: किंत्वेकेन प्रदेशेन द्वितीयादिप्रदेशाभावात्रिरवकाशः । भेत्ता खंदाणं-भेत्ता स्कंधानां । कत्ता अवि य–कर्ता अपि च स्कंधानां जीववत् । तद्यथा । यथाय जीव: स्वप्रदेशगतरागादिविकल्परूपनिस्नेहभावेन परिणतः सन् कर्मस्कंधानां भेत्ता विनाशको भवति तथा परमाणुरप्येकप्रदेशगतनिस्नेहभावेन परिणतः सन् स्कंधानां विघटनकाले भेत्ता भेदको भवति । यथा स एव जीवो निस्नेहात्परमात्मतत्त्वाद्विपरीतेन स्वप्रदेशगतमिथ्यात्वरागादिस्निग्धभावेन परिणत: सन्नवतरज्ञानावरणादिकर्मस्कंधानां कर्ता भवति तथा स एव परमाणुरेकप्रदेशगतस्निग्धभावेन परिणत: सन् ट्यगुणकादिस्कंधानां कर्ता भवति । अत्र योसौ स्कंधानां भेदको पणित: स कार्यपरमाणुरुच्यते यस्तु कारकस्तेषां स कारणपरमाणुरिति कार्यकारणभेदेन द्विधा परमाणुर्भवति । तथा चोक्तं । “स्कंधभेदावेदाद्यः स्कंधानां जनकोऽपरः।" अथवा भेदविषये द्वितीयव्याख्यानं क्रियते । परमाणुरयं । कस्मात् ? एकप्रदेशत्वेन बहुप्रदेशस्कंधाद्भिन्नत्वात्। स्कंधोयं कस्मात् ? बहुप्रदेशत्वेनैकप्रदेशत्वेनैकप्रदेशपरमाणोभिन्नत्वादिति । पविभत्ता-काल-संखाणं-प्रविभक्ता कालसंख्ययोर्जीववदेव । यथा एकप्रदेशस्थकेवलज्ञानांशेनैकसमयेन भगवान् केवली समयरूपव्यवहारकालस्य संख्यायाश्च प्रविभक्ता परिच्छेदको ज्ञायको भवति तथा परमाणुरप्येकप्रदेशेन मंदगत्याऽणोरण्वंतरव्यतिक्रमणलक्षणेन कृत्वा समयरूपव्यवहारकालस्य

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