Book Title: Panchastikay
Author(s): Kundkundacharya, Shreelal Jain Vyakaranshastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पंचास्तिकाय प्राभृत
२२५ व्यादिप्रदेशाभावादात्मादिनात्ममध्येनात्मातेन न सावकाशः । एकेन प्रदेशेन स्कंधानां भेदनिमित्तत्वात् स्कंधानां भेत्ता। एकेन प्रदेशेन स्कंधसंघातनिमित्तत्वात्स्कंधानां कर्ता । एकेन प्रदेशेनैकाकाशप्रदेशातिवर्तिताःतिपरिणामापनेन समयलक्षणकालविभागकरणात् कालस्य प्रविभक्ता । एकेन प्रदेशेन तत्सूत्रितद्व्यादिभेदपूर्विकाया: स्कंधेषु द्रव्यसंख्यायाः, एकेन प्रदेशेन तदवच्छिन्नैकाकाशप्रदेशपूर्वकायाः क्षेत्रसंख्यायाः, एकेन प्रदेशेनैकाकाशप्रदेशातिवर्तितद्गतिपरिणामावच्छिन्नसमयपूर्विकायाः कालसंख्यायाः, एकेन प्रदेशेन तद्विवर्तिजधन्यवर्णादिभावावबोधपूर्विकाया भावसंख्यायाः प्रविभागकरणात् प्रविभक्ता संख्याया अपीति ।।८।।
अन्वयार्थ-( प्रदेशतः ) प्रदेश द्वारा ( नित्यः ) परमाणु नित्य है, ( न अनवकाशः) अनवकाश नहीं हैं, (न सावकाशः ) सावकाश नहीं है, (स्कन्धानाम् भेत्ता ) स्कन्धोंका भेदनेवाला ( अपि च कर्ता :) तथा करनेवाला है और ( कालसंख्यायाः प्रविभक्ता ) काल तथा संख्याको विभाजित करनेवाला है ( अर्थात् कालका विभाजन करता है और संख्याका माप करता है।)
टीका—यह, परमाणुके एकप्रदेशीपनेका कथन है।
जो परमाणु है, नह हास्यासमें 4देश कार, जो कि रूपादिगुणसामान्यवाला है उसके द्वारा सदैव अविनाशी होनेसे नित्य है, वह वास्तवमें एक प्रदेश द्वारा उससे ( प्रदेशसे ) अभिन्न अस्तित्ववाले स्पर्शादिगुणोंको अवकाश देता है इसलिये अनवकाश नहीं है, वह वास्तवमें एक प्रदेश द्वारा ( उसमें ) द्वि-आदि प्रदेशोंका अभाव होनेसे, स्वयं ही आदि, स्वयं ही मध्य और स्वयं ही अन्त होनेके कारण ( अर्थात् निरंश होनके कारण ) सावकाश नहीं है, वह वास्तवमें एक प्रदेश द्वारा स्कन्धोंके भेदका निमित्त होनेसे स्कन्धोंका भेदन करने वाला है, वह वास्तव में प्रदेश द्वारा स्कन्धके संघातका निमित्त होनेसे स्कन्धों का कर्ता है, वह वास्तवमें एक प्रदेश द्वारा जो कि एक आकाशप्रदेशका अतिक्रमण करनेवाले ( लांघने वाले ) अपने गतिपरिणामको प्राप्त होता है उसके द्वारा 'समय' नामका कालका विभाग करता है इसलिये कालका विभाजक है। वह वास्तवमें एक प्रदेश द्वारा संख्याका भी विभाजक है, क्योंकि (१) वह एक प्रदेश द्वारा, उससे, रचे जानेवाले दो आदि भेदों पूर्वक द्रव्यसंख्याका विभाग स्कन्धोंमें करता है, (२) वह एक प्रदेश द्वारा, उसके जितनी मर्यादावाले एक आकाशप्रदेश पूर्वक क्षेत्रसंख्याके विभाग करता है, (३) वह एक प्रदेश द्वारा, एक आकाशप्रदेशका अतिक्रमकरनेवाले उस गतिपरिणमजितनी मर्यादावाले समय पूर्वक कालसंख्याका विभाग करता है, (४) वह एक प्रदेश द्वारा, उसमें विवर्त्तन पानेवाले ( परिवर्तित, परिणमित ) जघन्य वर्णादिक भावको जाननेवाले ज्ञान पूर्वक भावसंख्याका विभाग करता है इस कारण वह संख्याका विभाजन करने वाला भी है ।
१ विभाजक-विभाग करनेवाला, मापनेवाला। स्कन्धोंमें द्रव्यसंख्याका माप ( अर्थात् वे