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पंचास्तिकाय प्राभृत ववदेसा संठाणा संखा विसया या होति ते बहुगा । ते तेसि-मणण्णत्ते अण्णत्ते चावि विज्जते ।।४६।।
व्यपदेशाः संस्थानानि संख्या विषयाश्च भवन्ति ते बहुकाः ।
ते तेषामनन्यत्वे अन्यत्वे चापि विद्यन्ते ।।४६।। यथा देवदत्तस्य गौरित्यन्यत्वे षष्टीव्यपदेशः, तथा वृक्षस्य शाखा द्रव्यस्य गुणा इत्यनन्यत्वेऽपि । यथा देवदत्तः फलम१शेन धनदत्ताय वृक्षावाटिकायामचिनोतीत्यन्यत्वे कारकव्यपदेशः, तथा मृत्तिका घटभावं स्वयं स्वेन स्वस्मै स्वस्मात् स्वस्मिन् करोतीत्यात्मानमात्मात्पनात्मने आत्मन आत्मनि जानातीत्यनन्यत्वेऽपि । यथा प्रशोदेवदत्तस्य प्रांशुगौरित्यन्यत्वे संस्थानं, तथा प्रांशोवृक्षस्य प्रांशुः शाखाभरो मूर्तद्रव्यस्य गुणा इत्यनन्यत्वेऽपि । यथैकस्य देवदत्तस्य दश गाव इत्यन्यत्वे संख्या, तथैकस्य वृक्षस्य दश शाखाः एकस्य द्रव्यस्यानंता गुणा इत्यनन्यत्वेऽपि । यथा गोष्ठे गाव इत्यन्यत्वे विषयः, तथा वृक्षे शाखा: द्रव्ये गुणा इत्यनन्यत्वेऽपि । ततो न व्यपदेशादयो द्रव्यगुणानां वस्तुत्वेन भेदं साधयंतीति ।।४६।।
हिन्दी समय व्याख्या गाथा-४६ अन्वयार्थ--[ व्यपदेशा: व्यपदेश, [ संस्थानानि ] संस्थान । संख्या. [च ] और [ विषयाः ] विषय [ते बहुकाः भवन्ति ] अनेक होते हैं। [ते] वे [व्यपदेश आदि ], ( तेषाम् ) द्रव्य-गुणोंक ( अन्यत्वे ) अन्यपने में ( अनन्यत्वे च अपि ) तथा अनन्यपनेमें भी [विद्यते ] हो सकते हैं।
टीका—यहाँ व्यपदेश आदि एकान्तसे द्रव्य-गुणोंके अन्यपनेका कारण होनेका खंडन किया है।
जिस प्रकार “देवदत्त की गाय'' इस प्रकार अन्यपनेमें षष्ठीव्यपदेश ( छठी विभक्तिका कथन ) होता है, उसी प्रकार "वृक्षकी शाखा," "द्रव्यके गुण', ऐसे अनन्यपनेमें ( षष्टीव्यपदेश ) होता है, जिस प्रकार 'देवदत्त फलको अंकुश द्वारा धनदत्तके लिये वृक्ष परसे बगीचे में तोड़ता है, ऐसे अन्यपनेमें कारकव्यपदेश होता है, उसी प्रकार 'मिट्टी स्वयं घटभावको ( घडारूप परिणामको ) अपने द्वारा अपने लिये अपनेमेंसे अपनेमें करती है, आत्मा आत्माको आत्मा द्वारा आत्माके लिये आत्मामेंसे आत्मामें जानता है, ऐसे अनन्यपने में भी [ कारकव्यपदेश ] होता है । जिस प्रकार 'ऊँचे देवदत्तकी ऊँची गाय' ऐसा अन्यपने में संस्थान होता है, उसी प्रकार 'विशाल वृक्षका विशाल शाखासमुदाय, “मूर्त द्रव्यके मूर्त गुण' ऐसे अनन्यपने में भी [संस्थान ] होता है। जिस प्रकार 'एक देवदत्तकी दस गायें ऐसे अन्यपने में में संख्या होती है, उसी प्रकार ‘एक वृक्षको दस शाखाएँ', 'एक द्रव्यके अनंत गुण' ऐसे अनन्यपनेमें भी ( संख्या ) होती है। जिस प्रकार ‘बाड़ेमें गायें' ऐसे अन्यपने में विषय ( आधार ) होता है