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षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन
हिन्दी समय व्याख्या गाथा ६३ अन्वयार्थ—( यदि ) यदि ( कर्म ) कर्म ( कर्म करोति ) कर्मको करे और ( स: आत्मा ) आत्मा ( आत्मानम् करोति ) आत्माको करे तो ( कर्म ) कर्म ( फलम् कथं ददाति ) आत्माको फल क्यों देगा ( न ! और ( आत्मा ! अगा। तस्य पलं भुटते ) उसका फल क्यों भोगेगा?
टीका-~-यदि कर्म और जीवको अन्योन्य अकर्तापना हो, तो 'अन्यका दिया हुआ फल अन्य भोगे' ऐसा प्रसंग आयेगा, ऐसा दोष बतलाकर यहाँ पूर्वपक्ष उपस्थित किया गया है ।।६३।।
संस्कृत तात्पर्यवृत्ति गाथा ६३ अथ पूर्वोत्तप्रकारेणाभेदषट्कारकीव्याख्याने कृते सति निश्चयनयेनेदं व्याख्यानं कृतमिति नयविचारमजाननेकांतं गृहीत्वा शिष्य: पूर्वपक्षं करोतिः, कम्मं कर्म कतृ कम्मं कुव्वदि जदि यद्येकांतेन जीवपरिणामनिरपेक्षं सद्र्व्य कर्म करोति “जदि' सो अप्पा अप्पाणं-यदि च स आत्मात्मानमेव करोति न च द्रव्यकर्म । किह तस्स फलं भुजदि-कथमेतस्याकृतकर्मणः फलं भुक्ते । स कः । अप्पा--आत्मा कर्ता कम्मं च देदि फलं जीवेनाकृतं कर्म च कर्तृ कथमात्मने ददाति फलं न कथमपीति ।।६३।। चतुर्थस्थले पूर्वपक्षद्वारेण गाथा गता।
हिन्दी तात्पर्यवृत्ति गाथा ६३ उत्थानिका-आगे पूर्वोक्त प्रकारसे अभेद छः कारकका व्याख्यान करते हुये निश्चयनयसे यह व्याख्यान किया गया । इसे सुनकर नयोंके विचारको न जानता हुआ शिष्य एकांतको ग्रहण करके पूर्व पक्ष करता है।
अन्वय सहित सामान्यार्थ-(जदि) यदि (कम्म) द्रव्यकर्म ( कम्म) द्रव्यकर्मको एकांतसे विना जीवके परिणामकी अपेक्षाके ( कुवदि ) करता है और ( सो अप्पा) वह आत्मा ( अप्पाणं) अपनेको ही ( करेदि) करता है-द्रव्यकर्मको नहीं करता है तो (किध) किस तरह (अप्पा) आत्मा ( तस्स फलं) उस बिना किये हुए कर्मका फलको { भुजदि ) भोगता है ( च ) और ( कम्म) वह जीवसे बिना किया हुआ कर्म ( फलं च देदि) आत्मा में फल कैसे देता है ।
समय व्याख्या गाथा ६४ अथ सिद्धांतसूत्राणि
ओगाढ-गाढ-णिचिदो पोग्गल-कायेहि सव्वदो लोगो । सुहमेहिं बादरेहिं य णंता-णंतेहिं विविधेहिं ।।६४।।