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पंचास्तिकाय प्राभृत
२१५ बादरसौम्यगतानां स्कंधानां पुदलः इति व्यवहारः ।
ते भवन्ति षट्प्रकारास्त्रैलोक्यं यैः निष्पन्नम् ।। ७६ ।। स्पर्शरगंधवर्णगुणविशेषैः षट्स्थानपतितवृद्धिहानिभिः पूरणगलनधर्मत्वात् स्कंधव्यक्त्याविर्भावतिरोभावाभ्यामपि च पूरणगलनोपपत्तेः परमाणषः पुद्गला इति निश्चीयन्ते । स्कन्धास्त्वनेकपुद्गलमयैकपर्यायत्वेन पुनलेभ्योऽनन्यत्वात्पुद्गला इति व्यवह्नियंते, तथैव च वादरसूक्ष्मत्वपरिणामविकल्पैः षट्प्रकारतामापद्य त्रैलोक्यरूपेण निष्पध स्थितवंत इति । तथा हि-बादरबादराः, वादरा:, बादरसूक्ष्माः, सूक्ष्मवादराः, सूक्ष्माः सूक्ष्मसूक्ष्मा इति । तत्र छिन्नाः स्वयं संधानासमर्थाः काष्ठपाषाणादयो बादरबादराः । छिन्नाः स्वयं संथानसमर्थाः क्षीरघृततैलतोयरसप्रभृतयो बादराः । स्थूलोपलंभा अपि छेत्तु भेत्तुमादातुमशक्याः छायातपतमोज्योत्स्नादयो बादरसूक्ष्माः। सूक्ष्मत्वेऽपि स्थूलोपलंभाः स्पर्शरसगंधशब्दा; सूक्ष्मबादराः । सूक्ष्मत्वेऽपि करणानुपलभ्याः कर्मवर्गणादयः सूक्ष्माः । अत्यंतसूक्ष्माः कर्मवर्गणाभ्योऽधो व्यणुकस्कंधपर्यन्ताः सूक्ष्मसूक्ष्मा इति ।।७६।।
अन्वयार्थ ( बादरसौक्ष्म्यगतानां ) बादर ओर सूक्ष्मरूपसे परिणत ( स्कन्धानां ) स्कन्धोंका ( पुद्गलः ) “पुद्गल" ( इति ) ऐसा ( व्यवहार: ) व्यवहार है। ( ते) वे ( षट्प्रकारा: भवन्ति ) छह प्रकारके हैं, ( यैः ) जिनसे [ त्रैलोक्यं ] तीन लोक ( निष्पन्नं ) निष्पन्न हैं।
टीका–स्कन्धोंमें “पुद्गल' ऐसा जो व्यवहार है उसका यह समर्थन है।
(१) जिनमें षट्स्थानपतित वृद्धिहानि होती है ऐसे स्पर्श-रस-गंध, वर्णरूप गुणाविशेषोंने कारण ( परमाणु ) पूरण-गलन-धर्मवाले होनेसे तथा (२) स्कन्धव्यक्तिके ( स्कन्धपर्यायके ) आविर्भाव और तिरोभावकी अपेक्षासे भी ( परमाणुओंमे ) पूरण-गलन घटित होनेसे परमाणु पुद्गल हैं एसा निश्चय किया जाता है । स्कन्ध तो अनेकपुद्गलमय एकपर्यायपनेके कारण पुद्गलोंसे अनन्य होनेसे पुद्गल हैं ऐसा व्यवहार किया जाता है तथा वे] बादरत्व और सूक्ष्मत्वरूप परिणामोंके भेदों द्वारा छह प्रकारोंको प्राप्त करके तीन लोकरूप होकर रहे हैं । वे छह प्रकारके स्कन्ध इस प्रकार है-(१) बादरबादर, (२) बादर, (३) बादरसूक्ष्म, (४) सूक्ष्मबादर, (५) सूक्ष्म, (६) सूक्ष्मसूक्ष्म । वहाँ, (१) काष्ठापाषाणादिक ( स्कन्ध ) जो कि छेदन होने पर स्वयं नहीं जुड़ सकते, बादरबादर हैं, (२) दूध, घी, तेल, जल, रस आदि ( स्कन्ध ), जो कि छेदन होने पर स्वयं जुड़ जाते हैं, बादर हैं (३) छाया, धूप, अंधकार, चांदनी आदि ( स्कन्ध ) स्थूल होने पर भी जिनका छेदन, भेदन अथवा ( हस्तादि द्वारा ) ग्रहण नहीं किया जा सकता बादरसूक्ष्म हैं, (४) स्पर्श-रस-गंध-शब्द, जो कि सूक्ष्म होने पर भी स्थूल ज्ञात होते हैं, सूक्ष्मबादर हैं, (५) कर्मवर्गणादि ( स्कन्ध ) कि जिन्हें सूक्ष्मपना है तथा जो इन्द्रियोंसे ज्ञात न हों ऐसे हैं, वे सूक्ष्म हैं (६) कर्मवर्गणासे नीचेके द्विअणुक-स्कन्ध तकके ( स्कन्ध ) जो कि अत्यन्त सूक्ष्म हैं वे सूक्ष्मसूक्ष्म हैं ।।७६।।