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षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन इन्द्रियज्ञानाविषयाः, ये चात्यंतसूक्ष्मत्वेन कर्मवर्गणातीतास्ते सूक्ष्मसूक्ष्मा: कर्मवर्गणातीतेभ्यो अत्यंतसूक्ष्मा व्यणुकस्कंधपर्यंता इति तात्पर्यं ।। १।। एवं प्रथमस्थले स्कंधव्याख्यानमुख्यत्वेन गाथाचतुष्टयं समाप्तं ।
हिं० ता०-सामान्यार्थ ( अन्वय सुगम है) पृथ्वी, जल, छाया, चक्षुके विषयको छोड़कर चार इंद्रियोंके विषय, कर्मोक योग्य पुद्गल और कर्मोंसे सूक्ष्म स्कंध ऐसे छः भेदरूप पुगल होते हैं
विशेषार्थ--पुद्गलोके छः भेद हैं (१) स्थूल स्थूल (२) स्थूल (३) स्थूल सूक्ष्म (४) सूक्ष्म स्थूल (५) सूक्ष्म (६) सूक्ष्म सूक्ष्म । जो खंड किये जानेपर स्वयमेव मिल न सकें वे स्थूल स्थूल हैं। जैसे पर्वत, पृथ्वी, घट, पट आदि । जो अलग अलग किये जानेपर उसी क्षण ही स्वयं मिल सकते हैं वे स्थूल हैं जैसे घी, तेल, जल आदिक । जिनको देखते हुए भी हाथसे पकड़कर अन्य स्थानमें नहीं ले जा सकते वे स्थूल सूक्ष्म हैं जैसे छाया, आतप, प्रकाश आदि । जो आंखोंसे नहीं दिखलाई पड़ें वे सूक्ष्म स्थूल हैं जैसे आंखके सिवाय अन्य चार इंन्द्रियोंके विषय वायु, रस, गंध, शब्द आदि । सूक्ष्म जो किसी भी इन्द्रियसे न जाने जायें ऐसे पुदल जैसे जगानादि का योग्य पाएँ और सममूक्ष्म पुद्गल वे हैं, जो इन कर्मवर्गणाओंसे भी सूक्ष्म दो अणुके स्कंधतक हैं ।।१।।
(यह गाथा अमृतचंद्रकृत वृत्तिमें नहीं है ) 1 इस तरह प्रथमस्थलमें स्कंधके व्याख्यानकी मुख्यतासे चार गाथाएँ कहीं।
सं० ता०-तदनंतरं परमाणुव्याख्यानमुख्यतया द्वितीयस्थले गाथापंचकं कथ्यते । तथाहि । शाश्वतादिगुणोपेतं परमाणुद्रव्यं प्रतिपादयति, सव्वेसिं खंदाणं जो अंतो तं वियाण परमाणु-यथा य एव कर्मस्कंधानामंतो विनाशस्तमेव शुद्धात्मानं विजांनीहि तथा य एव षड्विधस्कंधानामंतोऽवसानो भेदस्तं परमाणु विजानीहि । सो-स च । कथंभूतः । सस्सदो-यथा परमात्मा टंकोत्कीर्णज्ञायकैकस्वभावेन द्रव्यार्थिकनयेनाविनश्वरत्वात् शाश्वत: तथा पुद्गलद्रव्यत्वेनाविनश्वरत्वात्परमाणुरपि नित्यः । असद्दो-यथा शुद्धाजीवास्तिकायो निश्चयेन स्वसंवेदनाज्ञानविषयोपि शब्दविषय: शब्दरूपो वा न भवतीत्यशब्दः तथा हि परमाणुरपि शक्तिरूपेण शब्दकारणभूतोपि व्यक्तिरूपेण शब्दपर्यायरूपो न भवतीत्यशब्दः । एक्को-यथा शुद्धात्मद्रव्यं निश्चयेन परोपाधिरहितत्वेन केवलमसहायमेकं भण्यते तथा परमाणु द्रव्यमपि व्यणुकादिपरोपाधिरहितत्वात्केवलमसहायमेकं भवत्येकप्रदेशत्वावर अविभागी । यथा परमात्मद्रव्ये निश्चयेन लोकाकाशप्रमितासंख्येयप्रदेशमपि विवक्षिताखंडैकद्रव्यत्वेन भागाभावादविभागी तथा परमाणुद्रव्यमपि निरंशत्वेन भागाभावादविभागी। पुनश्च कथंभूतः स परमाणु: । मुत्तिभवो-अमूर्तात्परमात्भद्रव्याद्विलक्षणा या तु स्पर्शरसगंधवर्णवती मूर्तिस्तया समुत्पनत्वात् मूर्तिभव इति सूत्राभिप्रायः ॥७७।। इति परमाणुस्वरूपकथनेन द्वितीयस्थले प्रथमगाथा गता ।