Book Title: Panchastikay
Author(s): Kundkundacharya, Shreelal Jain Vyakaranshastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 206
________________ २०२ षद्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन समय व्याख्या गाथा ७० कर्मवियुक्तत्वमुखेन प्रभुत्वगुणव्याख्यानमेतत् । उवसंत-खीणमोहो मग्गं जिण-भासिदेण समुवगदो। णाणाणु-मग्गचारी णिव्वाण-पुरं वजदि धीरो ।।७।। उपशांतक्षीणमोहो मार्ग जिनभाषितेन समुपगतः । ४ ज्ञानानुमार्गचारी निर्वाणपुरं व्रजति धीरः ।।७०।। अयमेवात्मा यदि जिनाज्ञया मार्गमुपगम्योपशांतक्षीणमोहत्वात्पहीणविपरीताभिनिवेशः समुद्धित्रसम्यग्ज्ञानज्योतिः कर्तृत्वभोक्तृत्वाधिकार परिसमाप्य सम्यक्प्रकटितप्रभुत्वशक्तिर्ज्ञानस्यैवानुमार्गेण चरति, तदा विशुद्धात्मतत्त्वोपलभरूपमपवर्गनगरं विगाहत इति ।।७०।। हिन्दी समय व्याख्या गाथा ७० अन्वयार्थ-( जिनभाषितेन मार्ग समुपगतः ) जो ( पुरुष ) जिनवचन द्वारा मार्गको प्राप्त करके { उपशांतक्षीणमोहः ) उपशांतक्षीणमोह होता हुआ ( अर्थात् जिसे दर्शनमोहका उपशम, क्षय अथवा क्षयोपशम हुआ है ऐसा होता हुआ ) ( ज्ञानानुमार्गचारी ) ज्ञानानुमार्गमें विचरता है ( ज्ञानका अनुसरण करनेवाले मार्गमें वर्तता है ), ( धीरः ) वह धीर पुरुष (निर्वाणपुरं व्रजति ) निर्वाणपुरको प्राप्त होता है। टीका-यह, कर्मवियक्तपनेकी मुख्यतासे प्रभूत्वगुणका व्याख्यान है। जब यही आत्मा जिनाज्ञा द्वारा मार्गको प्राप्त करके, उपशांतक्षीणमोहपनेके कारण ( दर्शनमोहके उपशम, क्षय अथवा क्षयोपशमके कारण ) जिसे विपरीत अभिनिवेश नष्ट हो जानेसे सम्यग्ज्ञानज्योति प्रगट हुई है ऐसा होता हुआ, कर्तृत्व और भोक्तृत्वके अधिकारको समाप्त करके सम्यकपसे प्रगट प्रभुत्वशक्तिवान होता हुआ ज्ञानका ही अनुसरण करनेवाले मार्गमें विचरता है ( आचरण करता है ), तब वह विशुद्ध आत्मतत्त्वको उपलब्धिरूप अपवर्गनगरको ( मोक्षपुरको ) प्राप्त करता है ।।७।। संस्कृत तात्पर्यवृत्ति गाथा ७० अथात्रापि पूर्वोक्तमपि प्रभुत्वं पुनरपि कर्मरहितत्वमुख्यत्वेन प्रतिपादयति, उवसंतखीणमोहो उपशांतीणमोह; अनोपशमशब्देनौपशमिकसम्यक्त्वं क्षीणशब्देन क्षायिकसम्यक्त्वं द्वाभ्यां तु क्षायोपशमिकसम्यक्त्वमिति ग्राह्यं । मग्ग-भेदाभेदरत्नत्रयात्मकं निश्चयव्यवहारमोक्षमार्ग, समुवगदोसमुपगतः प्राप्त:, केन? जिणभासिदेण-वीतरागसर्वज्ञभाषितेन । णाणं-निर्विकारस्वसंवेदनज्ञानं अभेदेन तदाधारं शुद्धात्मानं बा, अणु-अनुलक्षणीकृत्य समाश्रित्य तं ज्ञानगुणमात्मानं वा ।

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