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षद्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन भवन्ति । परमाणु परमाणवश्च भवन्ति । इति ते चदुब्बियप्पा पोग्गलकाया मुणेदव्वा-इति स्कंधत्रयं परमाणवश्चेति भेदेन चतुर्विकल्पास्ते पुद्गलकाया ज्ञातव्या इति । अत्रोपादेयभूतानंतसुखरूपाच्छुद्धजीवास्तिकायाद्विलक्षणत्वाद्धेयततवमिति भावार्थः ।।७४।।
हिं० ता० - उत्थानिका-अथानंतर चिदानंदमय एक स्वभावधारी शुद्ध जीवास्तिकायसे भिन्न त्यागने योग्य पुद्गलास्तिकायके अधिकारमें गाथाएँ दस हैं। उनमें पुद्गलोंके स्कंध होते हैं इस व्याख्यानकी मुख्यतासे "खंदा य खंददेसो' इत्यादि पाठक्रमसे गाथाएँ चार हैं, फिर परमाणुके व्याख्यानकी मुख्यतासे दूसरे स्थलमें गाथाएँ पांच हैं । इन पांचमें परमाणुके स्वरूपको कहते हुए “सन्चेसिं खंदाणं" इत्यादि गाथा सूत्र एक है । परमाणुओंसे पृथ्वी, जल आदि भेद भिन्न-भिन्न होते हैं- इस बात को खंडन करते हुए ‘आदेसमत्त' इत्यादि सूत्र एक है फिर शब्द पुद्गल द्रव्यकी पर्याय है इसके स्थापनकी मुख्यतासे 'सद्दो खंधप्पभवो' इत्यादि सूत्र एक है । फिर परमाणु द्रव्यके प्रदेशके आधारसे समय आदि व्यवहार काल होता है इसकी मुख्यतासे एकत्व आदि संख्याको कहते हुए "णिचोणाणवगासो' इत्यादि सूत्र एक है फिर परमाणु द्रव्यमें रस वर्ण आदिके व्याख्यानकी मुख्यतासे 'एयरसवण्ण' इत्यादि गाथा सूत्र एका है इस तरह परमाणु द्रव्यके प्ररूपणमें दूसरे स्थलमें समुदायसे गाथा पांच हैं। फिर पुद्गलास्तिकायको संकोचते हुए 'उवभोज्ज' इत्यादि सूत्र एक है । इस तरह दश गाथातक तीन स्थलसे पुद्गलके अधिकारमें समुदायपातनिका कही। आगे पुद्गलके चार भेद कहते हैं।
अन्वयसहित सामान्यार्थ-(खंधा ) स्कंध (य) और ( खंधदेसा) स्कंध देश ( य) तथा ( खंधपदेशा ) स्कन्ध प्रदेश ऐसे तीन प्रकार स्कंध तथा ( परमाणू ) परमाणु ( होति) होते हैं। (इदि) ये ( चदुवियप्पा) चार भेदरूप ( ते पोग्गलकाया) वे पुगलकाय (मुणेयव्या) जानने चाहिये।
विशेषार्थ-यहाँ ग्रहण करने योग्य अन्नत सुखरूप शुद्ध जीवास्तिकायसे विलक्षण होनेसे यह पुद्गलद्रव्य हेयतत्त्व है ऐसा तात्पर्य है ।।७४।।
खंधं सयलसमत्थं तस्स दु अद्धं भणंति देसो त्ति । अद्धद्धं च पदेसो परमाणू चेव अविभागी।।७५।।
स्कंधः सकलसमस्तस्तस्य त्व) भणन्ति देश इति । अर्धार्धं च प्रदेशः परमाणुश्चैवाविभागी ।।७५।।