________________
षद्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन गाथा ३ ( कुमतिश्रुत-विभङ्गानि च ) और कुमति, कुश्रुत या विभंग [त्रीणि अपि ] यह तीन [अज्ञान ] भी ( ज्ञानैः ) ( पांच ) ज्ञानके साथ ( संयुक्तानि ) संयुक्त किये गये ( इस प्रकार ज्ञानोपयोगके आठ भेद हैं)
टीका-यह, ज्ञानोपयोगके भेदों के नाम और स्वरूपका कथन है। . वहाँ, (१) आभिनिबोधिकज्ञान (२) श्रुतज्ञान (३) अवधिज्ञान (४) मनःपर्ययज्ञान (५) केवलज्ञान (६) कुमतिज्ञान (७) कुश्रुतज्ञान और (८) विभंगज्ञान—इस प्रकार ( ज्ञानोपयोगके भेदों के ) नामका कथन है।
( अब उनके स्वरूपका कथन किया जाता है—) आत्मा वास्तवमें अनंत, सर्व आत्मप्रदेशोंमें व्यापक, विशुद्ध ज्ञानसामान्यस्वरूप है । वह ( आत्मा ) वास्तवमें ज्ञानावरणकर्मसे आच्छादित प्रदेशवाला वर्तता हुआ, (१) उस प्रकारके ( अर्थात् मतिज्ञानके ) आवरणके क्षयोपशमसे और इन्द्रिय-मनके अवलम्बनसे मूर्त-अमूर्त द्रव्यका विकलरूपसे ( अपूर्ण रूपसे) विशेषतः अवबोधन करता है वह आभिनिबोधिकज्ञान है, (२) उस प्रकारके ( अर्थात् श्रुतज्ञानके ) आवरणके. क्षयोपशमसे और मनके अवलम्बनसे मूर्त-अमूर्त द्रव्यका विकलरूपसे विशेषत: अवबोधन करता है वह श्रुतज्ञान है, (३) उस प्रकारके ( अवधि ज्ञानके ) आवरणके क्षयोपशमसे ही मूर्त द्रव्यका विकलरूपसे विशेषतः अवबोधन करता है वह अवधिज्ञान है, (४) उस प्रकारके ( मनः पर्यय ज्ञान आवरणके ) क्षयोपशमसे ही परमनोगत ( दूसरोंके मनके साथ सम्बन्धवाले ) मूर्त द्रव्यका विकलरूपसे विशेषत: अवबोधन करता है वह मनः पर्ययज्ञान है (५) समस्त आवरणके अत्यन्त क्षयसे, केवल ही ( अकला आत्मा ही) मूर्त-अमूर्त द्रव्यका सकलरूपसे विशेषत: अवबोधन करता है वह स्वाभाविक केवलज्ञान है । (६) मिथ्यादर्शनके उदयके साथ आभिनिबोधिकज्ञान ही कुमतिज्ञान है, (७) मिथ्यादर्शनके उदयके साका श्रुतज्ञान ही कुश्रुतज्ञान है, (८) मिथ्यादर्शनके उदयके साथ अविधिज्ञान ही विभंग ज्ञान है । इस प्रकार ( ज्ञानोपयोगके भेदोंका ) स्वरूपका कथन है। इस प्रकार मतिज्ञानादि आठ ज्ञानोपयोगोंका व्याख्यान किया गया ।।४१।।
संस्कृत तात्पर्य वृत्ति गाथा-४१ ।। अथ ज्ञानोपयोगभेदानां संज्ञा प्रतिपादयति,-आभिनिबोधिकं मतिज्ञान श्रुतज्ञानमवधिज्ञानं मनः पर्ययज्ञानं केवलज्ञानमिति ज्ञानानि पंचभेदानि भवन्ति । कुमतिज्ञानं कुश्रुतज्ञान विभंगावधिज्ञानमिति च मिथ्याज्ञानत्रयं भवति । अयमत्र भावार्थः । यथैकोप्यादित्यो मेघावरणवशेन बहुधा भिद्यते तथा निश्चयनयेनाखंडैकप्रतिभासस्वरूपोप्यात्मा व्यवहारनयेन कर्मपटलवेष्टितः सन्मतिज्ञानादिभेदेन बहुधा भिद्यत इति ।।४१।। इत्यष्टविधज्ञानोपयोगसंज्ञाकथनरूपेण गाथा गता।
हिंदी तात्पर्य वृत्ति गाथा-४१ उत्थानिका-आगे ज्ञानोपयोगके भेदोंके नाम कहते हैं