Book Title: Panchastikay
Author(s): Kundkundacharya, Shreelal Jain Vyakaranshastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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षड्द्रव्य - पंचास्तिकायवर्णन
सत्ता मात्र रखनेसे एक द्रव्यरूप है, लोकाकाश प्रमाण असंख्यात अखंड एकमय शुद्ध प्रदेश रखने से एक क्षेत्ररूप है, निर्विकार चैतन्य चमत्कारकी परिणतिमें वर्तन करता हुआ एक समय मात्र परिणामको रख एक है, निर्मल एक चैतन्योति स्वरूप होनेसे एक स्वभावरूप है, ऐसे शुद्ध जीवका भी अपने सर्व प्रकारसे निर्मल केवलज्ञानादि अनन्त गुणोंके साथ भेद नहीं है ।। ४३ ।।
समय व्याख्या गाथा- ४४
द्रव्यस्य गुणेभ्यो भेदे, गुणानां च द्रव्याद् भेदे दोषोपन्यासोऽयम् ।
जदि हवदि दत्व - मण्णं गुणदो व गुणा य दव्वदो अण्णे ।
दव्वा णंतिय - मधवा दव्वाभावं पकुव्वंति । । ४४ । । यदि भवति द्रव्यमन्यद् गुणणतश्च गुणाश्च द्रव्यतोऽन्ये । द्रव्यानंत्यमथवा द्रव्याभावं प्रकुर्वन्ति ।। ४४ ।।
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गुणा हि क्वचिदाश्रिताः । यत्राश्रितास्तद्द्द्द्रव्यं तच्चेदन्यद् गुणेभ्यः । पुनरपि गुणा: क्वचिदाश्रिताः । यन्त्राश्रिताद् द्रव्यम् । तदपि अन्यच्चेद् गुणणेभ्यः । पुनरपि गुणाः क्वचिदाश्रिताः यत्राश्रिताः तद् द्रव्यम् । तदप्यन्यदेव गुणेभ्यः । एवं द्रव्यस्य गुणणेभ्यो भेदे भवति द्रव्यानन्त्यम् । द्रव्यं हि गुणानां समुदायः । गुणाश्चेदन्ये समुदायात्, को नाम समुदायः । एवं गुणानां द्रव्याद् भेदे भवति द्रव्याभाव इति । । ४४ । ।
हिन्दी समय व्याख्या गाथा- ४४
अन्वयार्थ – [ यदि ] यदि ( द्रव्यं } द्रव्य [ गुणतः ] गुणांसे ( अन्यत् च भवति ) अन्य [ भिन्न ] हो ( गुणा: च ) और गुण ( द्रव्यतः अन्ये ) द्रव्यसे अन्य हों तो ( द्रव्यानन्त्यम् । द्रव्यकी अनंतता हो [ अथवा ] अथवा [ द्रव्याभावं ] द्रव्यका अभाव [ प्रकुर्वन्ति ] हो ।
टीका - द्रव्यका गुणोंसे भिन्नत्व हो और गुणोंका द्रव्यसे भिन्नत्व हो, तो दोष आता है। उसका यह कथन हैं।
गुण वास्तवमें किसीक आश्रयसे होते हैं (वे ) जिसके अश्रित हो वह द्रव्य होता है। वह [ ] यदि गुणोंसे अन्य [भिन्न ] हो तो फिर भी, गुण किसीके आश्रित होगे, [] जिसक आश्रित हों वह द्रव्य होता है । वह यदि गुणोंसे अन्य हो तो फिर भी गुण किसी के आश्रित होंगे, ( वे ) जिसके आश्रित हों वह द्रव्य होता है। वह भी गुणांसे अन्य ही हो इस प्रकार यदि द्रव्यका गुणोंसे भिन्नत्व हो तो द्रव्यकी अनंतता हो ।