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षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन पदार्थ, स्वभाव अगोचर पदार्थ किसी भी पुरुषविशेषके प्रत्यक्ष हैं। यह साध्य धर्म है। उसमें साधक हेतु यह है दि इस पार्क का अनुमान होता है, जो-जो पदार्थ अनुमानका विषय होता है वह किसीको प्रत्यक्ष अवश्य दिखाई पड़ता है जैसे अग्नि आदि, क्योंकि ये सब पदार्थ अनुमानके विषय हैं इसलिये किसीके प्रत्यक्ष अवश्य हैं। जो किसी के प्रत्यक्ष नहीं है वह अनुमान का विषय भी नहीं। जैसे आकाशका पुष्प, यह किसीके प्रत्यक्ष नहीं है । इस तरह संक्षेपसे सर्वज्ञकी सत्तामें प्रमाण जानना चाहिए, विस्तारसे असिद्ध, विरुद्ध, अनेकांतिक, अकिंचित्कर हेतुओंसे दूषण या समर्थन सर्वज्ञ सिद्धि करने वाले अन्य ग्रन्थों में कहा है,वहांसे जानना । यह अध्यात्म ग्रन्थ है इससे विशेष नहीं कहा है । भावार्थ यह है कि यही वीतराग सर्वज्ञका स्वरूप सर्व रागादि विभावोंको त्यागकर निरंतर ग्रहण करने योग्य तथा भावना करने योग्य है ।। २९।।
समय व्याख्या गाथा-३० पाणेहिं चदुहिं जीवदि जीविस्सदि जो हु जीविदो पुव्वं । सो जीवो पाणा पुण वल-मिंदिय-माउ उस्सासो ।।३०।। ___प्राणैश्चतुर्भिर्जीवति जीविष्यति यः खलु जीवितः पूर्वम् ।
स जीवः प्राणाः पुनर्बलमिन्द्रियमायुरुच्छ्वासः ।। ३०।। जीवत्वगुणव्याख्येयम् । इन्द्रियबलायुरुच्छ्वासलक्षणा हि प्राणाः । तेषुः चित्सामान्यान्ययिनो भावप्राणाः, पुद्गलसामान्यान्वयिनो द्रव्यप्राणाः । तेषामुभयेषामपि त्रिष्वपि कालेष्वनवच्छिन्नसंतानत्वेन धारणात्संसारिणो जीवत्वम् । मुक्तस्य तु केवलानामेव भावप्राणानां धारणात्तदवसेयमिति ।।३०।।
हिन्दी समय व्याख्या गाथा-३० __ अन्वयार्थ:-----( यः खलु ) जो ( चतुर्भिः प्राणैः ) चार प्राणोंसे ( जीवत्ति ) जोता है. ( जीविष्यति ) जियेगा और ( जीवित: पूर्वम् ) पूर्वकालमें जीता था, ( स: जीन: } बह जान है. (पुनः प्राणा: ) और वह प्राणा ( इन्द्रियम् ) इन्द्रिय, ( बलम् ) बल, ( आयुः ) आयु तथा ( उमछ्वासाः ) स्वासोच्छवास है।
टीका---यह जीवत्वगुणकी व्याख्या है।
प्राण इन्द्रिय, बल, आयु तथा उच्छ्वासस्वरूप है। उनमें ( प्राणोंमे ), चित्सामान्यप अन्वयवाले वे भावप्राण हैं और पुद्गलसामान्यरूप अन्वयवाले वे द्रव्यप्राण हैं। उन दोनों प्राणोको त्रिकाल अविच्छिन्न-संतानरूपसे ( अदृट्ट धारासे) धारण करता है इसलिये संसारको
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