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पंचास्तिकाय प्राभृत शंकाका समाधान करते हैं कि तूने कहा कि कहीं सर्वज्ञ दिखलाई नहीं पड़ता है तो यहाँ इस कालमें नहीं दिखलाई पड़ता है कि तीन जगत तीन कालमें कोई सर्वज्ञ नहीं होता है, सो यदि तेरा कहना है कि इस मेला या इसमें सार्वज नहीं है तो हमें मान्य ही है और जो तू कहे कि तीन जगत् या तीन कालमें कोई सर्वज्ञ नहीं है तो तुमने कैसे जाना ? यदि तुमने तीन जगत् और तीन कालको सर्वज्ञ बिना जान लिया है तो तुम ही सर्वज्ञ हो, क्योकि सर्वज्ञ वहीं होता है जो कोई तीनों लोकों को जानता है और यदि तू सर्वज्ञ नहीं है और तू तीन जगत् तीन कालको नहीं जानता है तब तू यह कैसे निषेध कर सकता है कि तीन जगत् व तीन कालमें भी कोई सर्वज्ञ नहीं होता है। इसी पर दृष्टांत कहते हैं-जैसे कोई देवदत्त घट बिना पृथ्वीतलको आंखों से देख कर फिर कहता है कि यहाँ इस पृथ्वीतलपर घट नहीं है तो उसका कहना ठीक ही है, अन्य कोई अन्ध पुरुष बिना देखे क्या यह कह सकता है कि यहाँ भी घट नहीं है अर्थात् वह नहीं कह सकता। इसी तरह जो कोई तीन लोक व तीन कालको देखकर प्रत्यक्ष यह जान सके कि सर्वज्ञ नहीं है वही सर्वज्ञका निषेध कर सकता है। दूसरा जो सब जानता ही नहीं वह अन्धेके समान निषेध नहीं कर सकता है परन्तु जो तीन लोक तीन कालको जानता है वह सर्वज्ञका निषेध किसी तरह नहीं कर सकता है, क्योंकि वह स्वयं सर्वज्ञ होगया-उसको तीन लोक तीन कालके विषयका ज्ञान है । आपने यह हेतु कहा कि सर्वज्ञकी प्राप्ति नहीं है सो भी ठीक नहीं है क्योंकि इसमें प्रश्न है कि आपको सर्वज्ञकी प्राप्ति नहीं है या तीन जगत् व तीन कालके पुरुषोंको भी सर्वज्ञकी प्राप्ति नहीं है। यदि आपको सर्वज्ञकी प्राप्ति नहीं है तो इससे सर्वज्ञ का अभाव नहीं हो सकता है, क्योंकि आप तो परमाणु आदि सूक्ष्म पदार्थोको व दूसरे के चित्तकी बातोंको भी नहीं जानते हैं तो आपके न जानने से ये सब नहीं है ऐसा माना जायगा, सो नहीं सकता है यदि कहो कि तीन जगत् व तीन कालके पुरुषोंको भी सर्वज्ञकी प्राप्ति नहीं है तो यह आपने कैसे जाना ? इसका पहले ही विचार कर चुके हैं। यह दोष आपके हेतुमें आता है तथा जो आपने 'गधेके सींग समान है" ऐसा दृष्टांत रूप वचन कहा सो भी ठीक नहीं है, क्योंकि गधेमें सींग नहीं है परन्तु सर्व ठिकाने सींग नहीं है ऐसा नहीं है-गो आदिमें सींग प्रत्यक्ष दिखलाई पड़ता है तैसे ही सर्वज्ञ भी इस देशमें यहाँ नहीं है किन्तु सर्वत्र नहीं है ऐसा नहीं है। इस तरह संक्षेपसे आपके हेतु तथा दृष्टांतको दोष आता है, ऐसा जानना चाहिये ।
फिर शंकाकार कहता है कि सर्वज्ञके अभावमें तो आपने दूषण दिया, परन्तु यह तो बताइये कि सर्वज्ञके सद्भावमें क्या प्रमाण है ? यहाँ प्रमाण कहते हैं-सर्वज्ञ कोई है, क्योंकि जैसा पहले कहा है उस तरह उसके लिये बाधक प्रमाण कोई नहीं है जैसे अपने अनुभवमें आने योग्य सुख दुःख है । अथवा दूसरा अनुमान प्रमाण यह कहा जाता है कि सूक्ष्म पदार्थ व्यवहित या दूसरे से ढके पदार्थ, दूरदेशवर्ती पदार्थ, भूत भावीकालके