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षद्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन भट्टचाकमतके आश्रित शिष्यकी अपेक्षासे सर्वज्ञसिद्धि करने के लिये नीचे लिखे दोहेमें कथित नव दृष्टांतों से कथन किया है क्योंकि भट्ट-चार्वाक मत किसी सर्वज्ञको नहीं मानता है ।
उद्धृतगाथार्थ--यहाँ सालकी सिद्धि लिये मै सुम्मत दिये हैं। जैसे रत्नदीपमें प्रभा कमती बढ़ती दिखनेसे अनुमान होता है कि किसीमें अधिकसे अधिक तेज होना चाहिये। इसी तरह जगतके प्राणियोंमें ज्ञान कमती बढ़ती दिखलाई पड़ता है तब किसी भी जीवमें ज्ञानकी पूर्णता संभव है। जिसमें पूर्ण ज्ञान है वही सर्वज्ञ है। यही भाव अन्य दृष्टातोंका भी है जैसे (२) सूर्यकी किरणका कमती बढ़ती तेज, (३) चन्द्रमाकी चांदनी, (४) नक्षत्रकी ज्योति ( ५ ) घातु पाषाणोंका प्रकाश, (६) सोनेकी चमक (७) चांदीकी चमक (८) स्फटिककी ज्योति (९) आगकी तेजी । सोना, चांदीका दृष्टांत इसलिये भी कार्यकारी होगा कि ये शुद्ध होते-होते शुद्ध भी पाए जाते हैं। इसी तरह अशुद्ध आत्मा शुद्ध होतेहोते पूर्ण शुद्ध भी पाया जाना चाहिये, वही सर्वज्ञ है ।।२।।
यह जीवही शुद्ध अशुद्ध भावोंका कर्ता है यह व्याख्यान जीव अकर्ता है ऐसे एकांत मतधारी सांख्यमतके अनुसारी शिष्यको समझानेके लिये किया है। तथा यह जीव भोक्ता है। यह व्याख्यान 'कर्ता कर्मोका फल नहीं भोगता है क्योंकि वह क्षणिक है इस मतके माननेवाले बौद्ध मतके अनुसारी शिष्यके संबोधनके लिये किया है। यह जीव अपने शरीरके प्रमाण रहता है, यह कथन नैयायिक, मीमांसक व कपिल मतानुसारी आदि शिष्योंके संदेह निवारणके लिये किया है, क्योंकि वे आत्माको सर्वव्यापी या अणुमात्र मानते हैं। यह जीव अमूर्तिक है। यह व्याख्यान भट्ट चार्वाक मतके अनुसारी शिष्यके संबोधनके लिये किया है, क्योंकि वे जीवको अतीन्द्रिय ज्ञानधारी शुद्ध जड़से भिन्न नहीं मानते हैं । यह जीव द्रव्यकर्म व भावकर्मसे संयुक्त होता है, यह व्याख्यान सदाशिवमतके निराकरणके लिये किया है, क्योकि वे आत्माको सदा मुक्त व शुद्ध ही मानते हैं । इस तरह मतोंके द्वारा अर्थ जानना योग्य है । आगमद्वारा अर्थका व्याख्यान यह है कि यह जीव जीवत्व चेतना आदि स्वभावोंका धारी है यह बात परमागममें प्रसिद्ध ही है। यहाँ यह भावार्थ है कि-कर्मोकी उपाधिसे उत्पन्न जो मिथ्यात्व व रागादि रूप समस्त विभाव परिणाम उनको त्यागकर उपाधि रहित केवलज्ञानादि गुणोंसे युक्त शुद्ध जीवास्तिकाय ही निश्चयनयसे उपादेयरूपसे भावना करने योग्य है।
इस तरह शब्दार्थ, नयार्थ, मतार्थ, आगमार्थ तथा भावार्थ व्याख्यानके कालमें सर्व ठिकाने यथासंभव जानना योग्य है ।