Book Title: Panchastikay
Author(s): Kundkundacharya, Shreelal Jain Vyakaranshastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन मास होता है, दो मासकी एक ऋतु होती है, तीन ऋतुका एक अयन होता है, दो अयनका एक वर्ष होता है, इत्यादि पल्योपम, सागर आदि व्यवहारकाल जानना चाहिये। जो मंदगतिरूप परिणमन करते हुए पुदलके परमाणुसे प्रगट हो वह समय है । जो जलके बर्तन आदि बाहरी निमित्तभूत पुगलकी क्रियासे प्रगट हो वह घड़ी है । सूर्यके बिम्बके गमन आदि क्रिया विशेषसे प्रगट हो वह दिवस आदि व्यवहारकाल है। जैसे कुंभार चााक आदि बाहरी निमित्त कारणोंसे उत्पन्न घट मिट्टीके पिंडरूप उपादान कारणसे पैदा हुआ है, ऐसे ही निश्चयनयसे यह व्यवहारकाल द्रव्यकालाणुसे उत्पन्न हुआ है तो भी व्यहारनयसे पुछलादिके गमनका निमित्त होनेसे पराधीन है। यहाँ कोई शंका करता है कि-जो अन्यकी क्रिया विशेषसे अर्थात् सूर्यादिके गमनादिसे जाना जावे व जो अन्य उत्पन्न हुए पदार्थोके जनावनेका कारण हो वही काल है दूसरा कोई द्रव्य या निश्चयकाल नहीं है । इसका उत्तर कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि जो पहले कहे प्रमाण समय आदिकी पर्यायरूप सूर्यकी गति आदिसे प्रगट होता है वह व्यवहार काल है परन्तु जो सूर्य आदिकी गतिके परिणमनमें सहकारी कारण हो वह द्रव्य काल या निश्चय काल है । फिर शंकाकार कहता है कि सूर्यके गमन आदि परिणतिमें धर्म द्रव्य सहकारी कारण है, काल द्रव्यका यहाँ क्या काम है ? आचार्य उत्तर देते हैं कि नहीं। गमनरूप परिणमनमें धर्म द्रव्य सहकारी कारण है वैसे काल द्रव्य भी सहकारी कारण है। सहकारी कारण बहुतसे भी हो सकते हैं जैसे घटकी उत्पत्तिमें कुंभार, चाक, चीवर आदि अनेक कारण है व मछली आदिके लिये जल आदि व मनुष्योंके लिये शकट आदि व विद्याथरोंके लिए मन्त्र, औषधि आदि, व देवोंके लिये विमान गमनमें सहकारी कारण हैं वैसे काल द्रव्य भी गमनमें सहकारी कारण है।
कहीं पर कहा है कि पुद्गलके द्वारा बने हुए स्कंध व पुद्गल सहित जीव कालके निमित्तसे ही क्रियावान होते हैं। इसे आगे कहेंगे भी।
शंकाकार यह शंका करता है कि जितने कालमें एक प्रदेशका उल्लंघन पुद्गल परमाणु करता है वह समय है, ऐसा कहा गया है । वही परमाणु जब एक ही समय में चौदह राजू चला जाता है तब जितने प्रदेश चौदह राजूके हैं उतने ही समय हुए, एक ही समय कैसे लगा? आचार्य समाधान करते हैं कि ऐसा नहीं है । जब मंदगतिसे परमाणु- गमन करता हुआ एक प्रदेश उल्लंघन करता है तब एक समय उत्पन्न होता है वही परमाणु उतने ही एक समयमें चौदह राजू उल्लंघन करता है सो शीघ्र गतिसे करता है ऐसा कहा है, इसलिये इसमें कोई दोष नहीं है। समयके विभाग नहीं होते हैं। इसमें दृष्टांत कहते हैं जैसे कोई देवदत्त नामका पुरुष सौ योजन सौ दिनमें मंदगतिसे जाता है वही यदि विद्याके प्रभावसे एक