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पंचास्तिकाय प्राभृत
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शुद्ध निश्चयनयसे विशुद्ध ज्ञानदर्शन स्वभावमय शुद्ध चैतन्य प्राणोंसे जीता है तथा व्यवहार नयसे कर्मके उदयसे उत्पन्न जो द्रव्य व भावरूप इंद्रियादि चार प्राण उनसे जीता है, जीवेगा या पहले ही जी चुका है सो जीव एक सचेतन है, शेष पुद्गलादि पांच द्रव्य अचेतन व अजीव हैं । यह छः द्रव्योंमें जीव अधिकार दूसरा हुआ । अमूर्तिक शुद्ध आत्मासे विलक्षण, स्पर्श रस गंधवर्णवाली मूर्ति कहलाती है जिसके यह मूर्ति हो उसको मूर्त या पुहल कहते हैं । जीव द्रव्य यद्यपि अनुपचरित असद्भूत व्यवहार नयसे मूर्तिक है तो भी शुद्ध निश्चय नयसे अमूर्तिक है। धर्म, अधर्म, आकाश और काल द्रव्य सब अमूर्तीक है । निश्चयसे पुहल मूर्तिक है। शेष पांच अमूर्तिक हैं । छः द्रव्योंमें तीसरा मूर्त्त अधिकार हुआ ।
लोकमात्रप्रमाण असंख्येय प्रदेशधारी एक जीव द्रव्य है इसी तरह धर्म अधर्म भी असंख्यात असंख्यात पद्रेशधारी हैं, आकाश अनंत प्रदेशी है व पुल संख्यात, असंख्यात अनंत प्रदेश है । इस तरह ये पाँच द्रव्य जिनको पंचास्तिकाय संज्ञा है सप्रदेशी या बहुप्रदेशी है जब कि काल द्रव्य बहु प्रदेशमय कायपनेकी शक्ति न रखनेके कारण व मात्र एक प्रदेश रखनेके कारण अप्रदेशी है । यह छः द्रव्योंमें चौथा प्रदेश अधिकार पूर्ण हुआ ।
द्रव्यार्थिकनयसे धर्म, अधर्म, आकाश मात्र एक-एक द्रव्य हैं तथा जीव पुहल और काल अनेक द्रव्य हैं । यह छः द्रव्योंमें एकानेक अधिकार पाँचवाँ हुआ ।
सर्व द्रव्योंको अवकाश देनेकी सामर्थ्य रखनेसे क्षेत्रमय एक आकाशद्रव्य है, शेष पांच द्रव्य उसमें रहनेवाले अक्षेत्री हैं । यह छः द्रव्योंमें क्षेत्र अधिकार छठा पूर्ण हुआ ।
एक क्षेत्रसे दूसरे क्षेत्रमें जानेको हलनचलनरूप क्रिया कहते हैं। इस क्रियाको रखनेवाले जीव और पुद्गल दो ही द्रव्य हैं। धर्म, अधर्म, आकाश और कालद्रव्य अक्रिय हैं- क्रियारहित हैं, क्योंकि स्थिर हैं । यह छः द्रव्योंमें सातवाँ क्रिया अधिकार हुआ ।
धर्म, अधर्म, आकाश, कालद्रव्य यद्यपि अर्थपर्यायके परिणमनकी अपेक्षा अनित्य है तथापि मुख्यतासे ये नित्य हैं क्योंकि इनमें आकारके पलटनेरूप विभाव व्यंजनपर्याथ नहीं होती है । द्रव्यार्थिकनयसे यद्यपि जीव और पुद्रलद्रव्य नित्य हैं तथापि अगुरुलघुकी परिणतिरूप स्वभावपर्याय तथा विभाव व्यंजनपर्याय ( जिससे आकार पलटता है ) की अपेक्षासे अनित्य हैं । यह छः द्रव्योंमें नित्य नामका आठवाँ अधिकार हुआ ।
पुल, धर्म, अधर्म, आकाश और कालद्रव्य व्यवहारनयसे जीवके शरीर, वचन, मन, श्वासोश्वास बनाने में गतिमें स्थितिमें अवगाह पानेमें व वर्तन करनेमें क्रमसे सहकारी होते हैं