Book Title: Panchastikay
Author(s): Kundkundacharya, Shreelal Jain Vyakaranshastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पंचास्तिकाय प्राभृत
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यहाँ (सप्तभंगी में ) सर्वथापनेका निषेधक, अनेकान्तका द्योतक 'स्यात्' शब्द 'कथंचित्' ऐसे अर्थ में अव्ययरूपसे प्रयुक्त हुआ है। वहाँ - ( १ ) द्रव्य स्वद्रव्य क्षेत्र - काल - भावसे कथन किया जाने पर 'अस्ति' है, (२) द्रव्य परद्रव्य-क्षेत्र-काल- भावसे कथन किया जाने पर 'नास्ति' है, (३) द्रव्य स्वप्रव्य – क्षेत्र काल भावसे और परद्रव्य-क्षेत्र काल भावसे क्रमश: कथन किया जाने पर 'अस्ति और नास्ति' है, (४) द्रव्य स्वद्रव्य — क्षेत्र - काल भावसे और परद्रव्य-क्षेत्र-काल-भावसे युगपद् कथन किया जाने पर 'अवक्तव्य है' (५) द्रव्य स्वद्रव्य-क्षेत्र - काल - भावसे और युगपद् स्वपर- द्रव्य-क्षेत्र काल भावसे कथन किया जाने पर 'अस्ति और अवक्तव्य' है, (६) द्रव्य परद्रव्य-क्षेत्र काल भावसे और युगपद् स्वपरद्रव्य-क्षेत्र-काल- भावसे किया जाने पर 'नास्ति और अवक्तव्य' है, (७) द्रव्य स्वद्रव्य-क्षेत्र काल भावसे, परद्रव्य-क्षेत्रकाल- भावसे और युगपद् स्वपरद्रव्य – क्षेत्र - काल भावसे कथन किया जाने पर 'अस्ति, नास्ति और अवक्तव्य' । यह ( उपरोक्त बात ) अयोग्य नहीं है, क्योंकि सर्व वस्तु ( १ ) स्वरूपादिसे 'अशून्य' है, (२) पररूपादिसे 'शून्य' है, (३) दोनोंसे ( स्वरूपादिसे और पररूपादिसे ) 'अशून्य और शून्य' है, (४) दोनों ( स्वरूपादिसे पररूपादिसे ) एक साथ ही साथ 'अवाच्य' हैं, भंगोंके संयोगसे कथन करने पर (५) 'अशून्य और अवाच्य' हैं, (६) 'शून्य और अवाच्य' हैं, (७) 'अशून्य, शून्य और अवाच्य' हैं ||१४|
संस्कृत तात्पर्यवृत्ति गाथा - १४
अथ सर्वविप्रतिपत्तीनां निराकरणार्थं प्रमाणसप्तभंगी कथ्यते ।
"एकस्मिन्नविरोधेन प्रमाणनयवाक्यतः । सदादिकल्पना या च सत्यभङ्गीति सा मता ।।
सिय अस्थि- स्यादस्ति स्यात्कथंचिद्विवक्षितप्रकारेण स्वद्रव्यादिचतुष्टयापेक्षया अस्तीर्त्यः १ । सिय णत्थि - स्यान्नास्ति स्यात्कथंचिद्विवक्षितप्रकारेण परद्रव्यादिचतुष्टयापेक्षया नास्तीत्यर्थः २ । सिय अस्थिणत्थि स्यादस्तिनास्ति, स्यात्कथंचिद्विवक्षितप्रकारेण क्रमेण स्वपरद्रव्यादिचतुष्टयापेक्षया अस्तिनास्तीत्यर्थः ३ । सिय अव्वत्तव्यं यस्यादवक्तव्यं स्यात्कथंचिद्विवक्षितप्रकारेण युगपद्वक्तुमशक्यत्वात् ‘क्रमप्रवृत्तिभारती' ति वचनात् युगपत्स्वपरद्रव्यादिचतुष्टयापेक्षयाऽवक्तव्यमित्यर्थः ४ । पुणोवि तत्तिदयं पुनरपि तत्त्रितयं 'सियं अस्थि अव्वतव्वं' स्यादस्त्यवक्तव्यं स्यात्कथंचिद्विवक्षितप्रकारेण स्वद्रव्यादिचतुष्टयापेक्षया युगपत्स्वपरद्रव्यादिचतुष्टयापेक्षया च अस्त्यवक्तव्यमित्यर्थः ५ । 'सियणत्थि अवत्तव्वं' स्यान्नास्त्यवक्तव्यं स्यात्कथंचिद्विवक्षितप्रकारेण परद्रव्यादिचतुष्टयापेया युगपत्स्वपरद्रव्यादिचतुष्टयापेक्षया च नास्त्यवक्तव्यमित्यर्थः ६ । सिय अतिथणत्यि अव्वत्तव्यं' स्यादस्ति नास्त्यवक्तव्यं स्यात्कथंचिद्विवक्षितप्रकारेण क्रमेण स्वपरद्रव्यादिचतुष्टयापेक्षया युगपत्स्वपरद्रव्यादिचतुष्टयापेक्षया च अस्ति नास्त्यवक्तव्यमित्यर्थः ७ । संभवदि- संभवति । किं कर्तृ । दव्वं द्रव्यं खु स्फुटं । कथंभूतं । सत्तभंग-सप्तभंगं । केन । आदेसवसेण- प्रश्नोत्तरवशेन ।