Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. १. उ० १ सू० ९ ‘से '-(अथ)-शब्दस्य व्याख्या १४५ ____टीका--मूले 'से' इति शब्दस्तच्छब्दार्थकः, तच्छन्दः पूर्वप्रक्रान्तस्य परामर्शकः, तथा च-चलत् चलितमिति यत् तीर्थकरैरुक्तम् , तादृशं चलत् चलितमित्यादिकं वचनमेव तत्पदेन प्रकृते परामृश्यते । अथवा 'से' शब्दोऽथ-शब्दस्यार्थे विद्यते, मगधदेशे व्यवहारे तथैव प्रसिद्धः। अथ-शब्दस्यार्थस्तु वाक्योपन्यासरूपः, प्रश्नस्वरूपो वा, तथा च-'से'-शब्देन वाक्यारम्भः प्रश्नो वा सूचितो भवति । वह वेदित हो चुका, जो प्रहीण हो रहा है वह प्रहीण हो चुका, जो छिद रहा है वह छिद् चुका, जो भिद रहा है वह भिद चुका, जो जल रहा है वह जल चुका, जो मर रहा है वह मर चुका, जिसकी निर्जरा हो रही है वह निर्जीणे हो चुका, ऐसा जो कहा गया है सो क्या वह कहना ठीक है ? गौतमने ऐसा प्रश्न किया तब भगवान् ने कहा-हाँ गौतम जो चल रहा है वह चला इत्यादि सब कथन ठीक है। __ मूलमें "से" यहशब्द "तत्" शब्दके अर्थको कहता है । तत्-शब्द प्रक्रान्त अर्थका परामर्शक होता है। जैसे "चलत्"को "चलित" ऐसाजो तीर्थंकरोंने कहा है सो ऐसा वह "चलत् चलित" इत्यादिरूप वचन ही प्रकृतमें तत्पद से लिया गया है । अथवा-"से" शब्द “अथ"शब्दके अर्थ में भी आता है, क्योंकि मगधदेश में जो व्यवहार चलता है उसमें यह इसरूप से प्रसिद्ध माना गया है । अथ-शब्द का अर्थ वाक्योपन्यास अथवा प्रश्नस्वरूप होता है, इसलिये "से" शब्द से ચૂકયું, જેનું વદન થઈ રહ્યું છે તે વેદિત થઈ ચૂક્યું, જે પ્રહણ થઈ રહ્યું છે તે પ્રહણ થઈ ચૂક્યું, જે છેદાઈ રહ્યું છે તે છેદાઈ ચૂક્યું, જે ભેદાઈ રહ્યું છે તે ભેદાઈ ચૂકયું જે જળી રહ્યું છે તે જળી ચૂકયું, જે મરી રહ્યું છે તે મરી ચૂકયું અને જેની નિર્જરા થઈ રહી છે તે નિર્ણ થઈ ચૂકયું, એમ જે કહેવામાં આવ્યું છે તે કથન શું બરાબર છે ?
मावाने १४१५ मायो-' गौतम ! 'रेयासी २धुं छे ते यासी यूज्यु' ઈત્યાદિ કથન બરાબર છે.
टी -भूगमा 'से' ण् 'तत्' शहन। म मा डेसी छ. 'तत्' । पूरी प्रान्त मन पराभरा डाय छे. तथा "चलत्" ने तीथ ४२ मे रे 'चलित" ४९ छे, ते चलत् , चलितम् त्या ३५ वयन प्रतिमा तत् ५४थी. सेवायेछे.
मथ "से" ५४ ‘अथ' ५४ मा ५७] १५राय छे. ४।२। મગધ દેશમાં આ પ્રકારે જ તેને ઉપયોગ કરવામાં આવે છે. “a” શબ્દને भ० १९
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧