Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 836
________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श० १ ० ५ सू० ५ रत्नप्रभालेश्यायामुपयोगद्वारम् ८१३ आकारेण रहितोऽनाकारः यो वस्तुनो विशेषांशमगृहीत्वा सामान्यांशग्राही भवति स अनाकारः दर्शनमित्यर्थः। तथा च रत्नप्रभापृथिव्याश्रिता नारकाः साकारोपयुक्ता अनाकारोपयुक्ता वेति प्रश्नाकारः। भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि। 'गोयमा' हे गौतम ! 'सागारोवउचावि अणागारोवउत्तावि' साकारोपयुक्ता अपि अनाकारोपयुक्ता अपि नारका भवन्ति । 'इमीसे णं जाव' एतस्यां खलु रत्नप्रभापृथिव्यां 'सागारोवोगे वट्टमाणा' साकारोपयोगे वर्तमाना नारकाः किं कोहोवउत्ता' किं आकार है। इस आकार से सहित जो उपयोग है वह साकारोपयोगअर्थात् ज्ञानोपयोग है, तथा इस आकार से रहित जो उपयोग है वह अनाकारोपयोग-अर्थात् दर्शनोपयोग है । जो उपयोग वस्तुके विशेषांश को ग्रहण न कर के केवल सामान्यांश को ग्रहण करता है वह अनाकार उपयोग है ऐसा अनाकार उपयोग दर्शन होता है । यह घट है' इस प्रकार से विशेष अंश को ग्रहण करने वाला जो उपयोग होता है वह साकारोपयोग है ऐसा साकारोपयोग ज्ञान होता है अतः इसी साकार अनाकार उपयोग को लेकर यहां प्रश्न किया गया है कि रत्नप्रभापृथिवी के आश्रित हुए नारकी जीव साकारोपयुक्त होते हैं कि अनाकारोपयुक्त होते हैं ? इसका उत्तर (गोयमा ) हे गौतम ! ( सागारोवउत्ता वि अणागारोव उत्ता वि) वे नारक जीव साकार उपयोग वाले भी होते हैं और अनाकार उपयोग वाले भी होते हैं । ( इमीसे णं जाव सागोरोवओगे શક્તિનું નામ આકાર છે. આ આકારથી યુક્ત જે ઉપયોગ છે તે સાકારે પગ એટલે કે જ્ઞાનોપયોગ છે, તથા આ આકારથી રહિત જે ઉપગ છે તે નિરાકાપગ એટલે કે દર્શન પણ છે. જે ઉપગ વસ્તુના વિશેષાંશને ગ્રહણ ન કરતાં માત્ર સામાન્ય અંશને જ ગ્રહણ કરે છે. તે ઉપગને નિરાકાર ઉપયોગ કહે છે. એવાં નિરાકાર ઉપગને દર્શનઉપયોગ કહેવામાં આવે છે, “ આ ઘટ છે, આ પટ છે” તે રીતે વિશેષ અંશને ગ્રહણ કરનાર જે ઉપગ હોય છે તેનું નામ સાકારે પગ છે, એવાં સાકારપગ ને જ્ઞાનઉપગ કહે છે. અહિં સાકાર અને નિરાકારઉપગની અપેક્ષાએ એ પ્રશ્ન કરવામાં આવ્યો છે કે આ રત્નપ્રભાપૃથ્વીમાં રહેનારા નારક જીવો શું સાકાર५युत डरय छ, नि२।४।२।५युत हाय छ ? उत्तर-(गोयमा !) गीतम! ( सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि) ते ना२४ 0ो सा२७५योगा ! डाय छ भने नि२२ ७५७ ५५ उय छ, प्रश्न-( इमीसे णं जाव साग શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧

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