Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे शीतिर्द्रष्टच्या इति। अयं भावः-नारकप्रकरणे यत्र स्थानेऽशीतिर्भङ्गाः प्रोक्तास्तत्रेहाऽप्यशीतिरेव ज्ञातव्या । यत्र च सप्तविंशतिभङ्गास्तत्रेहाभङ्गकमेवेति । तथा संहननद्वारे 'पंचिदियतिरिक्खजोणियाण भंते केवइया संघयणा पन्नत्ता?, गोयमा! छ संघयणा, पण्णत्ता, तं जहा-वइररिसहनाराय-जाव-छेवटुं' ति, एवं संस्थानद्वारेपि 'छ संठाणा पन्नत्ता तं जहा समचउरंसे०' इत्यादि, एवं लेश्याद्वारेपि "कइ लेस्सा पन्नत्ता, गोयमा ! छ, तं जहा-कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा" इत्यादि । अनेन रूपेण तिर्यग्योनिकप्रकरणं विचारणीयम् ।। सू०९ ॥ इति पंचेन्द्रियतिरश्चां प्रकरणम् ॥ कहे गये हैं। उसी तरह पंचेन्द्रियतिर्यक्योनिकोंके मिश्रदृष्टिमें ८०भा होते हैं, क्योंकि यहां पर वे भी " क्रोधादिसे उपयुक्त भी होते हैं, मान से उपयुक्त भी होते हैं, इत्यादिरूपसे उनके ८० भंग हो जाते हैं" ऐसा जानना चाहिये। तात्पर्य यह है कि-नारक प्रकरणमें जिस स्थानमें अस्सी भंग कहे गये हैं उस स्थानमें यहां पर भी ८० ही भङ्ग हैं, परन्तु जहां नारक प्रकरणमें २७ भङ्ग कहे गये हैं वहां यहां पर भङ्ग नहीं हैयही बात (जेहिं सत्तावीसं भंगा तेहिं अभंगयं कायव्वं, जत्थ असीई तत्थ असीई कायव्वं) इस सूत्रपाठ द्वारा समझाई गई है। तथा दूसरी विशेषता संहननद्वार में है-वहां इस प्रकारसे प्रश्न करना-"पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवइया संघयणा पनत्ता? गोयमा छ संघयणा पण्णत्तातं जहा-वइररिसहनाराय जाव छेचट्ट) हे भदन्त ! पंचेन्द्रियतिर्यक योनिकोंके कितने संहनन कहे गये हैं ? गौतम ! उनके छ संहनन कहे गये हैं। वे इस प्रकारसे हैं वज्र ऋषभनाराच से लेकर सेवार्त तक। नारक जीवों में संहनन नहीं होता है, यहां होता है अत एव वहांकी अपेक्षा यहां यह विशेषता है। इसी तरह संस्थानद्वारमें भी विशेषता है। ભાંગા થાય છે. તાત્પર્ય એ છે કે નારકપ્રકરણમાં જે સ્થાનમાં ૮૦ ભાંગા કહ્યા છે. તે સ્થાનમાં અહીં પણ ૮૦ ભાંગા જાણવા, પરંતુ નારકપ્રકરણમાં જે સ્થાનમાં ર૭ ભાંગા કહ્યા છે તે સ્થાનમાં અહીં ભાંગાઓને અભાવ જાણ से वात सूत्ररे " जेहि सत्तावीसं भंगा तेहि अभंगयं कायव्वं, जत्थ असीई तत्थ असीई कायव्व" माया सूत्रद्वारा समाजवी छ. भी विशेषता सडनननारमा छ. सही मा प्रमाणे प्रश्न ४२वो-“पचिंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवइया संघयणा पण्णत्ता ?” “3 पून्य ! पयन्द्रितियं योनि वान खi सनन छ ? उत्तर-"गोयमा ! छ संघयणा पण्णत्ता तंजहा-वइररिसहनाराय जाव छेवटुं-ति" गौतम ! तेमना छ सडनन ह्यां छे. ते २मा प्रमाणे छવાઋષભનારાચથી લઈને છેવટ સુધીના છ સંહનને સમજવા. નારકમાં સંવનન હોતાં નથી. પણ પંચેન્દ્રિયતિયામાં સંહનને હોય છે, એજ પ્રમાણે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧