Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 853
________________ ८३० भगवतीसूत्रे संस्थानलेश्यादृष्टिज्ञानयोगाख्येषु सप्तसु द्वारेषु भवति, तथाहि-" असंखिज्जेसु णं भते पुढवीकाइयावाससयसहस्सेसु जाव पुढविकाइयाणं कइ सरीरा पन्नत्ता? गोयमा तिनि तं जहा-ओरालिए तेयए कम्मए" पृथिवीकायिकजीवानां त्रीणि शरीराणि भवन्ति, औदारिक-तैजस-कार्मण-भेदात् । एतेषु त्रिष्वपि शरीरेषु 'कोहोवउत्ता वि माणोवउत्ता वि' क्रोधोपयुक्ता अपि मानोपयुक्ता अपीत्यादिकमपि वक्तव्यमेव । तथा ' असंखेज्जेषु णं जाव पुढविकाइयाणं सरीरगा कि संघयणी' इत्यादि सर्वमिहापि पूर्वेवदेव ज्ञातव्यम् , केवलं वैलक्षण्यमेतावदेव 'पोग्गला मणुन्ना अमणुन्ना सरीरसंघायत्ताए परिणमंति' अनेनैव क्रमेण संस्थानद्वारेपि लेश्या४, दृष्टि५, ज्ञान६, योग७ इन सात द्वारों में है। जैसे-" असंखि. ज्जेसुणं भंते ! पुढवीकाझ्यावाससयसहस्सेसु जाव पुढविक्काइयाणं का सरीरा पण्णत्ता" हे भदन्त ! असंख्यात लाख पृथिवीकायिक आवासों में से एक एक पृथिवीकाधिक आवास में वर्तमान पृथिवीकायिक जीवों के कितने शरीर कहे गये हैं । (तिन्निसरीरा पन्नत्ता) हे गौतम ! तीन शरीर कहे गये हैं । वे इस प्रकार से हैं-औदारिक, तैजस, और कार्मग । ये तीनों शरीरवाले भी पृथिवीकायिक जीव क्रोध से भी युक्त होते हैं, मान से भी युक्त होते हैं, माया से भी युक्त होते हैं और लोभ से युक्त होते हैं। तथा ( असंखेज्जेसु णं जाव पढविकाइयाणं सरीरगा कि संघयणी) " असंख्यात लाख पृथिवीकायिकावासों में से एकर प्रथिवीकायिकावास में वर्तमान पृथवीकायिक जीवों के शरीर किस संहननवाले होते हैं " इत्यादि सब यहां पर भी प्रश्न और उत्तर पहिले की तरह ही जानना चाहिये । परन्तु यहां पर विशेषता के ग्ल इतनी ही है कि इनके शरीरसंघातरूप से जी पुद्गल परिणमते हैं वे (पोग्गला, શરીર, સંહનન, સંસ્થાન, વેશ્યા, દૃષ્ટિ જ્ઞાન અને યેગ, એ સાત દ્વારમાં છે भ “ असंखिज्जेसु णं भंते ! पुढयोकाइयावाससयसहस्सेसु जाव पुढवीक इयाण कह सरीरा पण्णत्ता १" के प्रमो मसयात ५ पृथ्वीयि मावासोमांना પ્રત્યેક પૃથ્વીકાયિક આવાસમાં રહેનારા પૃથ્વીકાયિક જીવેનાં કેટલાં શરીર કહ્યાં छ ? “ तिन्नि सरीरा पन्नत्ता" गौतम ! नए शरी२ ४i छ. ते शरी२॥ २५॥ પ્રમાણે છે-દારિક, તેજસ અને કાશ્મણ. તે ત્રણે શરીરવાળા પૃથ્વીકાયિક જીવો शोध, भान, माया मने म, मे यारेथी युटत डाय छे. तया-" असंखेज्जेसु णे जाव पुढवीकाइयाणं सरीरगा कि संघयणी?" है पून्य ! असण्यात साम પૃથ્વીકાયિકાવાસમાં રહેનાર પૃથ્વીકાયિક જીનાં શરીર કયા પ્રકારના અને ક્યા સંહનન વાળાં હોય છે. ઈત્યાદિ સમસ્ત પ્રશ્ન અને ઉત્તર પહેલાં કહ્યા પ્રમાણે જ સમજવા. પરતુ પૃથ્વીકાયિક જીવોમાં વિશેષતા એ છે કે તેમના શરીરસંઘાત રૂપે જે पद परिशते" पोग्गला मणुन्ना, अमणुन्ना, सरीरसंघायचाए परिणमंति" શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧

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