Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 854
________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श.१७.५सू०७ पृथ्वीकायिकादीनां स्थितिस्थानादिवर्णनम् ८३१ प्रश्नसूत्रं रचनीयम् , किन्तु उत्तरसूत्रे 'हुंडसंठिया' एतावदेव वक्तव्यम् । पृथिवीकायिकानां शरीराणि हुण्डसंस्थानसंस्थितानीति । किन्तु-'दुविहा सरीरगा पन्नत्ता तं जहा भवधारणिज्जा य उत्तरवेउबिया य' इति न वक्तव्यम् पृथिवीकायिकानां भवधारणीयादि द्विविधशरीरयोरभावात् । लेण्याद्वारे पुनरेवं वक्त. व्यम्-'पुढविक्काइया णं भंते! कइ लेस्साओ पन्नत्ताओ? गोयमा! चत्तारि, तं जहा कण्हलेस्सा जाव तेउलेस्सा" एतासु आद्यासु तिसृषु कृष्णनीलकापोतीलेश्यास्त्र भङ्ककमेव ज्ञातव्यम् , केवलं तेजोलेश्यायामशीतिभङ्गा भवन्तीति ज्ञातव्यम् । मणुन्ना, अमणुन्ना, सरीरसंघायत्ताए परिणमंति) पुद्गल मनोज्ञ और अमनोज्ञ दोनों प्रकारके होते हैं, इसी क्रमसे संस्थानद्वारमें भी प्रश्नसूत्र की रचना करलेनी चाहिये। किन्तु उत्तरसूत्र में “ हुंड संठाणसंठिया" हुंडसंस्थानवाले उनके शरीर होते हैं ऐसा ही कहना चाहिये। किन्तु यहांपर "शरीर दो प्रकारके होते हैं एक भवधारणीय दूसरे उत्तरवैक्रिय यह पाठ नहीं कहना चाहिये । क्योंकि पृथिवीकायिक जीवोंके भवधारणीय आदि दो प्रकारके शरीरोंका अभाव होता है। लेश्याद्वारमें ऐसा कहना चाहिये " पुढवीकाइयाणं भंते ! कइलेस्साओ पण्णत्ताओ? गोयमा चत्तारि लेस्साओ पण्णत्ताओ-तं जहा-कण्हलेस्सा जाव तेउलेस्सा" कि हे भदन्त ! पृथिवीकायिक जीवों के कितनी लेश्याएँ कहो गई हैं ? गौतम ! इनके चार लेश्याएँ कहो गई हैं। जैसे कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या और तेजोलेश्या। इनमें कृष्णलेश्या नीललेश्या और कापोतोलेश्या आदिकी इन तीन लेश्याओंमें अभङ्गक ही-भङ्गाभाव ही है। केवल एक तेजोलेश्यामें ही ८० भङ्ग होते हैं। ऐसा जानना પુલે મનેસ અને અમનેજ્ઞ, એમ બન્ને પ્રકારના હોય છે, એ જ પ્રમાણે સંસ્થાनवा समधी सूत्रनी ५५] २यना ४२वी ने ये. ५५] उत्त२ सूत्रमा “ हुडसंठाणसंठिया " मे नये तेमनां शरी२ " उसस्थानवाज" डाय छ, પણ ત્યાં શરીર બે પ્રકારનાં હોય છે. એક ભવધારણીય શરીર અને બીજું ઉત્તરક્રિય શરીર, એવા પાઠનું કથન કરવું નહીં કારણ કે પૃથ્વીકાયિક જીવોમાં ભવધારણીય વગેરે બે પ્રકારનાં શરીરને અભાવ છે. શ્યાદ્વારમાં એવું કહેવું ने “पुढवीकाइयाणं भंते ! कइ लेस्साओ पण्णत्ताओ ? " "गोयमा ! चत्तारि लेस्साओ पण्णत्ताओ-तंजहा-कण्हलेस्सा जाव ते उलेस्सा " पून्य ! पृथ्वीवित જીવોને કેટલી વેશ્યાઓ હોય છે. ? હે ગૌતમ ! તેમને ચાર લેશ્યાઓ હોય છે -કૃષ્ણલેશ્યા, નિલલેશ્યા, કાપતલેશ્યા, અને તેજલેશ્યા તેમ ની કૃષ્ણ, નીલ કાપતલેશ્યાઓમાં અભંગ7 (ભાંગાઓને અભાવ) છે માત્ર તેજલેશ્યામાં જ૮૦ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧

Loading...

Page Navigation
1 ... 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879