Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 844
________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श०१उ०५ सू०६ असुरकुमारादीनां स्थितिस्थानादिवर्णनम् ८२१ होज्जा लोभोवउत्ता' सर्वेपि तावत् असुरकुमारा भवन्ति लोभोपयुक्ताः, देवा हि परिग्रहसंज्ञावत्वेन लोभवन्तो भवन्ति, इत्यसुरकुमाराणामपि देवत्वात् तेपि लोभवन्त एव । 'अहवा लोभोवउत्ता य मायोवउत्ते य' अथवा लोभोपयुक्ताश्च मायोपयुक्तश्च, 'अहवा लोभोवउत्ता यमायोवउत्ता य' अथवा लोभोपयुक्ताश्च मायोपयुक्ताश्च नारकप्रकरणे क्रोधं बहुवचनान्तं मुख्यं कृत्वा मानमायालोभेषु एकत्वं बहुत्वं च प्रयुज्य. लोभ, माया, मान और क्रोध, इस प्रकार से निर्देश करना चाहिये। इसी बात को सूत्रकारने (सव्वे वि ताव होज्जा लोभोव उत्ता) इस सूत्र द्वारा प्रकट किया है । तात्पर्य कहने का यह है कि जब ऐसा प्रश्न किया गया कि " हे भदन्त ! असुरकुमारावास में वर्तमान असुरकुमार क्या क्रोधोपयुक्त होते हैं, मानोपयुक्त होते हैं, मायोपयुक्त होते हैं, लोभोपयुक्त होते हैं " तब इसके उत्तर में भङ्ग प्रतिलोम से-विपरीतरूप से क्रोध के स्थान में लोभ के कथन से करना चाहिये जो " सव्वे वि ताव होज्जा लोभोवउत्ता" इस सूत्र द्वारा प्रकट किये गये हैं कि समस्त असुरकुमार लोभोपयुक्त होते हैं । देव परिग्रहसंज्ञा वाले होने के कारण लोभ वाले होते हैं इसलिये असुरकुमार भी देव हैं इस कारण वे भी लोभवाले ही हैं (अहवा-लोभोवउत्ता य मायोवउत्ते य ) कितनेक असुरकुमार लोभीपयुक्त होते हैं और कोई एक असुरकुमार मायोपयुक्त होता है । ( अहवा-लोभोवउत्ता य मायोवउत्ता य ) अथवा अनेक असुरकुमार लोभोपयुक्त होते हैं और अनेक मायोपयुक्त भी होते हैं। नारक प्रकरण में क्रोधका बहुवचनान्त और मुख्य करके तथा मान માન અને કોઈ એ કમે ભાંગાઓને નિર્દેશ કર જોઈ એ. એજ વાત સૂત્ર १२ २॥ सूत्र भा२३त घट ४री छ ( सव्वे वि ताव हे।ज्जा लेाभोवउत्ता) તાત્પર્ય એ છે કે ગૌતમસ્વામીએ એ પ્રશ્ન પૂછયો છે કે “હે પૂજ્ય ! અસુ. રકમારવાસમાં રહેનારા અસુરકુમારે શું કીધયુક્ત હોય છે? માનયુક્ત હોય છે? માયાયુક્ત હોય છે ? લેભયુકત હોય છે ?” ત્યારે તેના જવાબરૂપે પ્રભુએ કહ્યું છે કે ભાંગાએ પ્રતિમથી–વિપરીત ક્રમથી કોઇને સ્થાને લેભનું કથન शन नाव न.२ " सव्वे वि ताव होज्जा लेाभोवउत्ता" से सत्र વડે પ્રકટ કરેલ છે. દેવમાં પરિગ્રહ સંજ્ઞા વિશેષ હોવાને કારણે તેઓ ભયકત હોય છે. અસુરકુમારે પણ દે છે. તેથી તેઓ પણ લેભયુક્ત હોય છે. "अहवा-लाभोवउत्ता य मायोवउत्ते य” ! मसु२४ा। सोमयुत डाय छ. मने मसुरेशुमार भायायुत डाय छे. “ अहवा-लोभोवउत्ता य मायोवउत्ता य" અથવા અનેક અસુરકુમારે લોભપયુક્ત હોય છે. અને માપયુકત પણ હોય છે, શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧

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