Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 833
________________ ૦ भगवती सूत्रे अण्णाणाई भाणियव्वाई' एवं त्रीणि ज्ञानानि त्रीण्यज्ञानानि भणितव्यानि, आभिनिवोधिकज्ञानवदेव सप्तविंशतिभङ्गयुक्तानि आद्यानि त्रीणि ज्ञानानि वक्तव्यानि तथा सप्तविंशतिभङ्गोपेतानि त्रीणि अज्ञानानि च ज्ञेयानि । इह तु त्रीणि ज्ञानानि यदुक्तं तत् आभिनिबोधिक ज्ञानस्य पुनर्गणनां कृत्वैव प्रोक्तम्, अन्यथा द्वे एव ज्ञाने वाच्ये स्याताम् । एवं त्रीणि अज्ञानानीत्यत्र यदि विभङ्गात् पूर्व जायमानं मत्यज्ञानं श्रुताज्ञानं चेति द्वयं विवक्ष्यते तदाऽशीतिर्भङ्गा एवं लभ्यन्ते अल्पत्वात्तेषाम्, किन्तु ते जघन्यावगाहनावन्तो भवन्ति ततो जघन्यावगाहनाssश्रयेणैव तेषामशीतिर्भङ्गा अवसेया इति । क्या लोभोपयुक्त होते हैं ? भगवान् इसका उत्तर देते हुए कहते हैं कि ( सत्तावीस भंगा) आभिनिबोधिकज्ञान में वर्तते हुए जो नारक जीव हैं, उनके क्रोधादि विषय में पहिले की तरह ही २७ भङ्ग जानना चाहिये । ( एवं तिणि णाणाई तिणि अण्णाणाई भाणियव्वाई ) इसी तरह से तीन ज्ञान और तीन अज्ञान के विषय में भी जानना चाहिये । तात्पर्य कहने का यह है कि श्रुतज्ञान में एवं अवधिज्ञान में वर्तमान नारकजीवों के क्रोधादिक विषय में २७ भङ्ग ही जानना चाहिये। इसी तरह से तीन अज्ञानवाले नारकजीवों के क्रोधादि के विषय में २७ भङ्ग जानना चाहिये । यहां जो सूत्र में " तिणि णाणाई " तीनज्ञान " ऐसा पाठ कहा है वह आभिनिबोधिकज्ञान की पुनः गणना करके ही कहा गया है। नहीं तो दो ही ज्ञान कहना चाहिये था । इसी प्रकार से " तिणि अण्णाणाइ "" त्रीणि अज्ञानानि " यहां पर यदि विभङ्ग से पहिले जायमान मत्यज्ञान और श्रुताज्ञान विवक्षित होते हैं तब तो ८० भङ्ग होते हैं, क्यों कि इन अज्ञानोंवाले जीव अल्प होते हैं । (सत्तावीसं भंगा ) हे गौतम! मालिनियोधि ज्ञानवाणा ने नासु भवेोछे તેમના ક્રયાદિક વિષયમાં ૨૬ જ ભાંગા પહેલાં કહ્યા પ્રમાણે સમજવા. 46 ( एवं तिष्णि णाणाइ भाणियव्वा ) मेन प्रमाणे त्रहो ज्ञान भने त्रगु અજ્ઞાના વિષયમાં પણ સમજવું. તાત્પ એ છે કે શ્રતજ્ઞાન અને અવિજ્ઞાન વાળા નારક જીવેાના ક્રોધ દિ વિષેના ૨૭ ભાંગા જ સમજવા. એજ પ્રમ ણે ત્રણ અજ્ઞાનવાળા નારક જીવેના કોધાદિના વિષયમાં પણ ૨૭ ભાંગા સમજવા. अहीं सूत्रमां भे" ऋभु ज्ञान " ह्यां छे, ते मालिनिमोधि ज्ञानने ( भतिज्ञानने) પણ સાથે ગણીને જ કહેલ છે. નહીં તેા ખેજ જ્ઞાન કહેવા જોઇતાં હતાં. આ प्रमाणे “निन्नि अण्णाण त्रीणि अज्ञानानि " सही' ले विलग ज्ञाननी पडेसां उत्पन्न થયેલ મતિ અજ્ઞાન અને શ્રુતજ્ઞાનનું વર્ણન કરવાનું હોય તે ૮૦ ભાંગા કરવા પડે છે, શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧

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