Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिकाटीका श०१ उ०१ सू० २२ पंचेन्द्रियतिर्यगाहारादिनिरूपण २९३ अविरहिओ, आभोगनिव्वत्तिओ जहणणेणं अंतोमुहत्तस्स, उक्कोसेणं छहभत्तस्स, सेसं जहा चउरिदियाणं जाव नो अचलियं कम्मं णिज्जति । एवं मणुस्साणवि, णवरं आभोगनिव्वत्तिए जहण्णेणं अंतो मुहुत्तस्स, उक्कोसेणं अट्ठमभत्तस्स, सोइंदिय० वेमायत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमंति, सेसं जहा चउरिदियाणं तहेव जाव निज्जरेंति ॥ सू० २२ ॥ छाया-पंचेन्द्रिय तिर्यग् योनिकानां स्थितिभणितव्या उच्छ्वासो विमात्रया आहारोऽनाभोगनिर्वतितोऽनुसमयमविरहितः, आभोगनिवर्तितो जघन्येनान्तर्मुहर्तन, उत्कृष्टेन षष्ठभक्तेन, शेषं यथा चतुरिन्द्रियाणाम् , यावत् नो अचलितं कर्म
पंचेन्द्रियजीवनिरूपण" पंचेन्दिय तिरिक्ख जोणियाणं " इत्यादि (पंचेंदिय तिरिक्ख जोणियाणं) पंचेन्द्रिय तियंच योनिवाले की (ठिई भाणियव्वा) स्थिति का वर्णन इस "प्रस्ताव" में करना चाहिए। (उस्सासो वेमायाए ) उच्छ्वास विमात्रावाला कहना चाहिए। (आहारो अणाभोग निव्वत्तिओ अणु-समयं अविरहिओ) वे दोनों प्रकार का आहार करते हैं। उस में से जो 'अनाभोगनिवर्तित' आहार है वह विरह बिना (बिना रुकावट के) प्रतिक्षण होता रहता है। तथा (आभो. गनिव्वत्तिओ जहण्णेणं अंतो मुहुत्तस्स, उक्कोसेणं छट्ठभत्तस्स) जो आभोगनिवर्तित आहार है वह कम से कम अन्तर्मुहूर्त के बाद और ज्यादा से ज्यादा (षष्ठ भक्त से) दो दिन के बाद होता है। (सेसं जहा
पंचेन्द्रियजीव निरूपणम्
"पंचेन्द्रिय तिरिक्ख योणियाणं" इत्यादि। (पंचेंदिय तिरिक्ख योणियाणं) पाथेन्द्रिय तिय य यानिवाजानी (ठिई भाणियव्वा) स्थितिनुं वन मा प्रस्तावमा ४२वु नये. (उस्सासो वेमायाए) पास विभात्रावाणो डवोनस. (आहारो अणाभोग निव्वत्तिओ अणुसमय अविरहिओ) તેઓ બંને પ્રકારનો આહાર કરે છે. તેમને જે અનાભોગનિવર્તિત આહાર છે ते वि२४ विना प्रतिसमय थते! २९ छे. तथा-( आभोगनिव्वत्तिओ जहण्णेण अंतोमुहुत्तस्स, उक्कोसेणं छट्ठभत्तस्स) २ मासाशनिवतित मा.२ छ ते माछामा माछा मन्तभुत पछी मने पधारेमा धारे मे दिवस पछी थाय छ, (सेसं.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧