Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 829
________________ ८०६ भगवतीसूत्रे सम्यग्दृष्टयो मिथ्यादृष्टयः सम्यगमिथ्यादृष्टयः ? उत्तरयति भगवान्-'तिनिवि' त्रयोपि, सम्यग्मिथ्यामिश्रेतिदृष्टित्रयवन्तो भवन्तीति भावः, 'इमीसे णं जाव' एतस्यां खलु यावत् , एतस्यां रत्नप्रभापृथिव्यां नरकावासे स्थिताः 'सम्मइंसणे वट्टमाणा नेरइया' सम्यगदर्शने वर्तमानाः ' नैरयिका' कि कोहोवउत्ता ४' किं क्रोधोपयुक्ताः ४भवन्ति । उत्तरयति भगवान्-'सत्तावीसं भङ्गा' सप्तविंशतिर्भङ्गाः, अत्रापि क्रोधमानमायालोभैरेकत्वबहुत्वाभ्यां सप्तविंशतिरेव भङ्गाः वक्तव्याः, 'एवं मिच्छादसणे वि ' एवं मिथ्यादर्शनेपि सप्तविंशति भङ्गा ज्ञातव्याः । सम्मामिच्छादसणे असीई भंगा' सम्यमिथ्यादर्शने विद्यमानानां नैरयिकाणां अशीतिर्भङ्गा कापोतलेश्या में वर्तमान नारक जीव क्या सम्यग्दृष्टि होते हैं ? मिथ्यादृष्टि होते हैं ? या सम्यगमिथ्यादृष्टि होते हैं ? यह प्रश्न है । इसका उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं कि ( तिनि वि) हे गौतम ! वे तीनों प्रकार के होते हैं । अर्थात् सम्यग्दृष्टि भी होते हैं, मिथ्यादृष्टि भी होते हैं और मिश्रदृष्टि भी होते हैं। (इमीसे णं जाव सम्मदंसणे वट्टमाणा नेरइया०) इस रत्नप्रभापृथिवी के नरकावासों में वर्तमान सम्यग्दृष्टि नारक जीव क्या क्रोधोपयुक्त होते हैं ? मानोपयुक्त होते हैं ? मायोपयुक्त होते हैं ? लोभोपयुक्त होते हैं ? (सत्तावीसं भंगा) यहां २७ भङ्ग होते हैं। अर्थात् यहां पर भी पहिले की तरह क्रोध, मान, माया और लोभ इनको लेकर एकवचन बहुवचन द्वारा २७ भङ्ग ही होते हैं। ( एवं मिच्छादसणे वि) इसी तरह से मिथ्यादर्शन में वर्तमान नारक जीवों के भी २७ ही भङ्ग जानना चाहिये । तथा (सम्मामिच्छादसणे असीईभंगा) सम्यक् मिथ्यादर्सन में वर्तमान नारक जीवों के ८० જીવે શું સમ્યગ્દષ્ટિ હોય છે? મિથ્યદૃષ્ટિ હોય છે કે સમ્યમિથ્યાષ્ટિ હોય છે? उत्तर-( तिन्नि वि) ड गौतम! तेसो ऋणे मारना डोय छे. अटले સમ્યગ્દષ્ટિ પણ હોય છે, મિથ્યાદૃષ્ટિ પણ હોય છે, અને મિશ્રદૃષ્ટિ પણ હોય છે. (इभीसे णं जाव सम्मदसणे वठ्माणों नेरइया १) २॥ २त्नप्रभा पृथ्वीमा 30 લાખ નરકાવાસમાં રહેતા સભ્યદૃષ્ટિ નારક જીવો શું ફેધોપયુક્ત હોય છે? માપયુકત હોય છે? માયોપયુક્ત હોય છે ? લોપયુકત હોય છે? ઉત્તર(सत्तावीसं भंगा ) मी पण २७ मां थाय छ, मेटले मही. ५५ पडसांनी જેમ ક્રોધ, માન, માયા અને લોભની અપેક્ષાએ એકવચન અને બહુવચન વડે २७ २८ in uने छे. (एवं मिच्छादसणे वि.) मेवी शत भिथ्याशनमा पतभान ना२४ वान ५५ २७ ४ win समावा. तथा ( सम्मा मिच्छा दसणे असीति भंगा) सभ्यभिथ्याशनमा (भिष्टिमा) विधमान ना२४ वान શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧

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