Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 756
________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श.१ उ०५ सू० १ नारकादि(२४)दण्डकावासनिरूपणम् ७३३ शतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! त्रिंशत् निरयावासशनसहस्राणि प्रज्ञप्तानि, गाथा-त्रिंशच्च पञ्चविंशतिः पञ्चदशदशैव च शतसहस्राणि । त्रिणि एकं पञ्चोनम् पञ्चैव अनुत्तरा निरयाः ॥ १॥ कियन्ति भदन्त ! असुरकुमारावासशतसहस्रागि प्रज्ञप्तानि ? एवम् चतुःषष्टिः असुराणां चतुरशीतिश्च भवति नागानाम् , द्विसप्ततिः फिर गौतमस्वामी पूछते है-(इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए का निरयावाससयसहस्सा पनत्ता) हे भदन्त ! इस रत्नप्रभा पृथिवी में कितने लाख नरकावास कहे गये हैं ? (गोयमा ! तीसं निरयावाससयसहस्सापन्नत्ता) हे गौतम प्रथम रत्नप्रभा पृथिवी में नरकावास ३० तीस लाख कहे गये हैं। किस पृथिवी में कितने नरकावास हैं यह इस गाथा द्वारा प्रकट किया गया है-गाहा तीसा य पन्नवीसा, पन्नरस दसेव या सयसहस्सा । तिन्नेगं पंचूणं पंचेव अणुत्तरा निरया ।। १ ।। पहली पृथिवी में ३० तीस लाख, दूसरी पृथिवी में २५ पच्चीसलाख तीसरी में १५ पन्द्रहलाख, चौथी में १० दस लाख पांचवी में ३ तीनलाख छट्ठी में ५ पांच कम एक लाख और सातवों में पांच ही नरकावास हैं। ___ अब भवनपतियों के आवाससम्बधी गौतम स्वामी प्रश्न करते हैं (केवइया णं भंते! असुरकुमारावाससयसहस्सा पन्नत्ता?) हे भदन्त! असुरकुमारों के आवास कितने लाख कहेगये हैं ? उत्तर-(एव) असुरकुमारी के आवास इस प्रकार से कहे गये-(चउसट्ठी असुराणं) अप्रकुमारों के ६४ चोसठलाख (चउरासीई य होइ नागाणं ) नागकुमारों के ८४ इश गौतभस्वाभा छ -इमोंसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए कति निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता १ 3 मावन्! २२त्नमा पृथ्वीमा टसा न२वासी या छ ? गोयमा ! तीसं निरयावाससयसहस्सो पन्नत्ता 8 गौतम! प्रथम રત્નપ્રભા પૃથ્વીમાં ત્રીસ લાખ નરકાવાસો કહ્યાં છે. કઈ પૃથ્વીમાં કેટલા નરકાવાસે છે તે આ ગાથા દ્વારા પ્રકટ કરેલ છે. गाहा-तीसाय पन्नवीसा, पन्नरस दसेव या सयसहस्सा। तिनिगं पंचूणं पंचेव, अणूत्तरा निरया ॥ પહેલી પૃથ્વીમાં ત્રીસલાખ, બીજીમાં પચીસલાખ, ત્રીજીમાં પંદરલાબ, ચોથીમાં દસ લાખ, પાંચમીમાં ત્રણ લાખ, છઠ્ઠીમાં એકલાખમાં પાંચ ઓછાં અને સાતમીમાં પાંચ જ નરકાવાસ છે. હવે ભવનપતીઓના આવાસ સંબંધી પ્રશ્ન કરતાં ગૌતમસ્વામી કહે છે है-केवइया णं भंते ! असुरकुमारावाससयस इस्सा ? उ भगवन् ! असुरशुभारानां मावासोटा सा छ ? उत्तर-एवं ससुरशुभाशनी सध्या या प्रमाणे ही छे-चउसदी असुराणं मसुमारानां योसहवास, चउरासीई य होइ नागाणं શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧

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