Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 816
________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श.१ ७०५ सू०२ (२४)दण्डकेषु स्थितिस्थाननिरूपणम् ७९३ विज्ञेयम् । 'एएणं गमेणं तिन्नि सरीरा भाणियव्या' एतेन गमेन त्रिणि शरीराणि भणितव्यानि, त्रिणि वैक्रियतैजस कार्मण शरीराणि पठितव्यानि। त्रिष्वपि शरीरेषु सप्तविंशतिर्भङ्गा वक्तव्या इति भावः। यद्यपि अतिदेशेन तैजसकार्मणशरीरयोरेव ग्रहणं कर्तव्यं तथापि त्रयाणामपि शरीराणामत्यन्त साम्योपदर्शनार्थमेव 'एएणं. गमेणं तिनि सरीराणि' इति पाठेन शरीरत्रयस्य ग्रहणं कृतम् । ननु यदा जीवो विग्रहगतौ भवति तदा तस्य तैनसकार्मणशरीरद्वयमेव भवतीति तयोः शरीरयोरल्पत्वादशीतिरपि भङ्गा वक्तव्या इति कथं तयोः सप्तविंशतिरेव भङ्गा कथिताः ? इति चेदत्रोच्यतेचाहिये । ( एएणं गमेणं तिन्नि सरीरा भाणियघा ) इसी गम से वैक्रिय तैजस और कार्मण शरीर के संबंध में पूर्वोक्त प्रमाण से २७ भङ्ग ही जानना चाहिये । यद्यपि यहां पर अतिदेश से तैजस और कार्मण इन दो शरीरों का ही ग्रहण होना चाहिये था, परन्तु जो तीनों शरीरों का ग्रहण किया गया है, सो इन तीनों शरीर में अत्यन्त साम्य है इस बात को दिखलाने के लिये ही किया गया है। तोत्पर्य यह है कि वैक्रिय शरीर में २७ भङ्ग तो पहिले ही सूत्रकार ने प्रकट कर दिये हैं फिर यहां वैक्रिय शरीर को पुनः ग्रहण करने की क्या आवश्यकता थी-यहां तो तैजस और कार्मण शरीर में भङ्ग कहना चाहिये था, परन्तु ऐसा न करके तीनों शरीरों में २७ भङ्ग कहना चाहिये' ऐसा जो सूत्रपाठ किया गया है उसका तात्पर्य यह है कि इन तीनों शरीरों में अत्यन्त साम्य है यह बात प्रकट करने के लिये ऐसा किया गया है। शङ्का-जिस समय जीव विग्रहगति में होता है उस समय उसके तैजस कार्मण ये दो ही शरीर होते हैं, इसलिये ये दो शरीर अल्प होने से इनमें अस्सी भङ्ग कहना चाहिये । यहां इनके २७ भङ्ग ही क्यों कहे मा प्रमाणे ४ सभा'. “ एएणं गमेणं तिन्नि सरीरा भाणियवा" या રીતે વૈક્રિય, તેજસ અને કામણ શરીર સંબંધી પણ પૂર્વોક્ત પ્રકારના સત્તાવીસ ભાંગા જ સમજવા. જો કે અહીં બાકીના તિજસ અને કાર્માણ શરીરને જ ઉલલેખ થે જોઈતું હતું, પણ ત્રણે શરીરને અહીં જે ઉલ્લેખ કરવામાં આવ્યું છે તેનું કારણ એ છે કે તે ત્રણે શરીરમાં અત્યન્ત સામ્યતા રહેલી છે તે સામ્યતા બતાવવાને માટે જ સૂત્રકારે એવું કર્યું છે. શંકા–જે સમયે જીવ વિગ્રહગતિમાં હોય છે તે સમયે તેને તેજસ અને કામણ એ બે શરીર જ હોય છે. તેથી તે બે શરીર અલ્પ હોવાથી તેમના૮૦, ૮૦ ભાંગા જ કહેવા જોઈએ તેને બદલે અહીં તેમના ૨૭ ભાંગા જ શા માટે भ-२०० શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧

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