Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 808
________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श० १ उ०५ सू.३ रत्प्रभाऽवगाहनास्थाननिरूपणम् ७५ पर्यन्तं संग्राह्यम् 'तप्पाउग्गुकोसिया ओगाहणा' तत्मायोग्योत्कर्षिकाऽवगाहना, तस्य विवक्षितस्य नरकस्य प्रायोग्या समुचिता या उत्कर्षिका सा तत्यायोग्योत्कपिका-यथा त्रयोदशप्रस्तरे धनुःसप्तकं रत्नित्रयमङ्गुल पट्कं चेति । ___साम्प्रतं क्रोधादिविषये प्रश्नयन्नाह-' इमीसे ण भंते ' इत्यादि । ' इमीसे णं भंते' एतस्यां खलु भदन्त ! 'रयणप्पभाए पुढवीए' रत्नप्रभायां पृथिव्यां 'तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु' त्रिंशति निरयावासशतसहस्रेषु 'एगमेगंसि निरयावासंसि' एकैकम्मिन् निरयावासे 'जहणियाए ओगाहणाए वट्टमाणा णेरइया' जघन्यायामवगाहनायां वर्तमाना नैरयिकाः किं कोहोवउत्ता, माणोवउत्ता, कही गई है । इस जघन्य अवगाहनामें जब एक दो तीन आदि प्रदेशोंकी वृद्धि होते होते जब यह वृद्धि असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि तक पहुँच जाती है तब तक अवगाहना प्रदेशों की वृद्धियुक्त जघन्य अवगाहना कही गई है। और ये प्रदेशवृद्धि ही अवगाहनास्थान हैं । ये अवगाहना स्थान इस तरह से असंख्यात हो जाते हैं। (तप्पाउरगुकोसिया ओगाहणा ) तथा विवक्षित नरक के प्रायोग्य जो उत्कृष्ट अवगाहना है वह तत्प्रायोग्य उत्कर्षिका अवगाहना है । जैसे १३वें प्रस्तर में रहनेवाले नारकजीवों की यह अवगाहना ७ धनुष, ३ रत्नि-हाथ और ६ अंगुल की है । ( इमीसे णं भंते !) हे भदन्त ! इस (रयगप्पभाए पुढवीए) रत्नप्रभा पृथिवी में (तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु) ३०लाख निरयावासों में (एगमेगंसि निरयावासंसि ) एक २ नरकावास में ( जहणिया ओगाहणाए वट्टमाणा नेरइया) जघन्य अवगाहना में वर्तमान नारकजीव (किं ગાહનામાં એક, બે, ત્રણ વગેરે પ્રદેશની વૃદ્ધિ થતાં થતાં જ્યાં સુધી તે વૃદ્ધિ અસંખ્યાત પ્રદેશની વૃદ્ધિ સુધી પહોંચે છે, ત્યાં સુધીની અવગાહનાને પ્રદેશની વૃદ્ધિયુક્ત જઘન્ય અવગાહના કહી છે. અને તે પ્રદેશવૃદ્ધિને જ અવગાહના स्थानो ४ छ. २ रीते ते २५॥उनास्थान असण्यात डोय छे. ( तप्पाउग्गुकोसिया ओगाहणा) तथा विवक्षित ना२४ने योग्य 2 अष्ट माना હોય છે તેને “તસ્ત્રાગ્ય ઉત્કર્ષિક અવગાહના” કહે છે. જેમ કે તેમા પ્રતટમાં (પાથડામાં) રહેનાર નારક જીવની ઉત્કૃષ્ટ અવગાહના સાત ધનુષ, त्र नि (12) मने छ अशुद्ध प्रभाए छ. ( इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए) लगवन् ! ॥ २त्नप्रभा पृथ्वीमा (तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु) श्रीस सास न२४पासोमानी ( एगमेगंसि निरयावासंसि) प्रत्ये: न२४वासमा (जण्णियाए ओगाहणाए वट्टमाणा नेरइया) धन्य सानामा २७८ ना२४ म० ९९ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧

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