Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 809
________________ भगवतीसूत्र मायोवउत्ता, लोभोवउत्ता' कि क्रोधोपयुक्ताः मानोपयुक्ताः मायोपयुक्ताः लोभोपयुक्ताः, जघन्यायामवगाहनायां वर्तमाना निरयावासे नारकाः किं क्रोधमानमायालोभवन्तो भवन्तीति प्रश्नः। भगवानाह-'गोयमे 'त्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'असीई भंगा भाणियव्या' अशीतिभङ्गा भणितव्याः । कियत्पर्यन्तमित्याह-'जाव संखिज्जपएसाहिया जहनिया ओगाहणा' यावत् संख्येयप्रदेशाधिका जघन्याऽवगाहना, अत्र यावच्छब्देन एकप्रदेशादारभ्य दशप्रदेशपर्यन्तं पाठो ग्राह्यः, एवं च-एकप्रदेशाधिकजघन्यावगाहनात् आरभ्य संख्यातपदेशाधिकनधन्यावगाइनायामशोतिभङ्गाः कर्तव्या इति भावः। तथा-'असंखेज्जपएसाहियाए जहणियाए ओगाहणाए वट्टमाणाणं' असंख्येयप्रदेशाधिकायां जघन्यायामवगाहनायां वर्तमानानाम् तथा ' तप्पाउग्गुकोसियाए ओगाहणाए वट्टमाणाणं' तत्मायोग्योकोहोवउत्ता, माणोवउत्ता, मायोवउत्ता, लोभोवउत्ता) क्या क्रोधोपयुक्त होते हैं, मानोपयुक्त होते हैं, मायोपयुक्त होते हैं, लोभोपयुक्त होते हैं। यह प्रश्न है। इसका उत्तर भगवान् इस प्रकार देते हैं कि-(गोयमा!) हे गौतम! (असीइ भंगा भाणियब्वा) यहां८० भंग कहना चाहिये-ये ८०भंग कहां तक कहना चाहिये! तो इसके लिये कहागया है कि (जाव संखेज्जपएसाहिया जहन्निया ओगाहणा) यावत् संख्यातप्रदेशाधिक जघन्य अवगाहना तक। यहां यावत् शब्द से एकप्रदेश से लेकर दश प्रदेश पर्यन्त पाठ लिया गया है । इस तरह एक प्रदेश अधिक जघन्य अवगाहना से लेकर संख्यात प्रदेश अधिक जघन्य अवगाहना में ८० भंग करना चाहिये तथा ( असंखेज्जपएसाहियार जहणियाए ओगाहणाए वट्टमाणाणं ) असंख्यातप्रदेशाधिक अवगाहना में वर्तमान एवं ( तप्पाउग्गुको. । (किं कोहोवउत्ता, माणोवउत्ता, मायोव उत्ता, लोभोवउत्ता?) शुओघा५युत હોય છે? માનોપયુક્ત હોય છે ? માપયુક્ત હોય છે? લેપયુકત હોય छ ? भगवान महावी२२वामी ते प्रश्ननो २मा प्रमाणे ४१५ मापेछ-(गोयमा!) उ गौतम ! असीई भंगा भाणियव्वा ) डी मेसी Hin 3 नये. ते એસી ભાંગા કયાં સુધી કહેવા તે દર્શાવવાને માટે કહેવામાં આવ્યું છે કે (जाव संखेज्जपएसाहिया जहन्निया ओगाहणा ) सयात प्रदेशाधि धन्य अमाना सुधी ४ा. मी " यावत्" ५६ भारत में प्रदेशथी ने દસ પ્રદેશ સુધી પાઠ લેવામાં આવ્યો છે. આ પ્રમાણે એક પ્રદેશ અધિક જઘન્ય અવગાહનાથી લઈને સંખ્યાત પ્રદેશ અધિક જઘન્ય અવગાહનામાં એંસી in ४२॥ नस. तथा ( असंखेज्जपएसाहियाए जहणियाए ओगाहणाए वट्टमाणाणं) मस-यातप्राधि धन्य मानामा २७॥ मने (तप्पाउग्गुशासियाए ओगाहणाए वट्टमाणाणं) तप्रायोग्य पृष्ट मानामा २७सा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧

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