Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिकाटी श. १ उ०४ स० ५ छद्मस्थादीनां सिद्धिप्ररूपणम् ७१३ अनागतेऽपि एवमेव, नवरं 'सेत्स्यन्ति' भणितव्यम् , यथा छद्मस्थस्तथा आधोवधिकोपि तथा परमाधोवधिकोपि, त्रयस्त्रय आलापकाः भणितव्याः। केवली खलु भदन्त ! मनुष्योऽतीते अनन्ते शाश्वते समये यावत् अन्तमकार्षीत् ? हन्त असैत्सीत् यावत् अन्तमकार्षीत् , एते त्रयआलापका भणितव्याः छद्मस्थस्य यथा, नवरं असैत्सुः आलापक बोलना चाहिये। (अणागयं वि एवं चेव) अनागतकालमें भी इसी तरह पूर्वोक्त प्रकारसे जानना चाहिये-(नवर) परन्तु विशेषता इस प्रकार से है-(सिज्झिस्संति भाणियव्यं) यहां आलापक बोलते समय भविष्यस्कालिक " सेत्स्यंति" इस क्रियापद का प्रयोग करके उस आलापक को बोलना चाहिये। ____ अब सूत्रकार अवधिज्ञान के विषय में कहते हैं कि (जहा छउमस्थो तही आहोहिओ वि ) जैसे छद्मस्थ का कथन किया है वैसा ही आधोवधिक का भी (तहा परमाहोहिओ वि) तथा परमाधोवधिक का भी कथन जानना चाहिये । (तिणि तिणि आलावगा भाणियव्वा)
और इनके तीनर आलापक कहना चाहिये । अब सूत्रकार केवली के विषयका कथन करते हैं-(केवलीणं भंते ! मणू से अतीतं अणंतं सासयं समयं जाव अंतं करेंसु ?) हे भदन्त बीते हुए अनंत शाश्वत कालमें क्या केवली मनुष्य अर्थात् भगवंत ने यावत् समस्त दुःखों का अन्त किया ? प्रभुने इस प्रश्न का उत्तर इस प्रकार ( हंता गोयमा ! सिन्झिसु जाव अंतं करिसु) हां गौतम ! जो केवली मनुष्य हुए हैं वे अतीत कालमें सिद्धि लिया । प्रयो॥ ४२१. २५४ मा नये. “अणागयं वि एवं चेव" मनातासमा ५ वी शते पूरित प्रारथी l से. " नवर" विशेषता २ रीते छ “ सिज्झिस्सति भाणियव्वं ” महिं माता५४ मोती मते भविष्यसि “ सेन्स्यति " . यापहनी प्रयोग शन ते આલાપક બોલવું જોઈએ.
वे सूत्र४१२ मवधिज्ञानन विषयमा ४ छ , “ जहा छउमत्थो तहा आहोहिओ वि"वीशत भस्थन ४थन ४२ छ. तेवी रीते साधावपिन ५], तथा " तहा परमाहोहिओ वि" ५२माधोवधिनु ५५५ ४थन से “तिण्णि तिणि अलावगा भाणियवा" तेम तेना त्रत्रण मासा डा न. वे सूत्र२ वदाविषय ४थन ४२ छ. “ केवलो णं भंते ! मणूसे अतीत अणत सासय समय जाव अंत करेंसु ? " 3 मावन् ! पाते। અનંત શાશ્વત કાળમાં કેવલી મનુષ્ય અર્થાત્ ભગવાને યાવત્ સમસ્ત દુઓને मत ४यों ? प्रभुसे या प्रश्न मावी ते उत्तर माध्यो-“ हंता गोयमा ! सिन्झिसु जाव अंत करिसु" गौतम ! सो उपक्षी मनुष्यो थया छ तेया
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧