Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 738
________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श. १ उ. ४ सू० ५ छमस्थादीनां सिद्धिप्ररूपणम् ७१५ न्ति यावदन्तं करिष्यन्ति वा ? हंत गौतम ! अतीतेऽनंते शाश्वते समये यावदन्तं करिष्यन्ति वा । तद् नूनं भदंत ! उत्पन्नज्ञानदर्शनधरः अर्हन् जिनः केवली 'अलमस्तु' इति वक्तव्यं स्यात् , हन्त गौतम ! उत्पन्नज्ञानदर्शनधरोहन जिनः केवली 'अलमस्तु' इति वक्तव्यं स्यात् । तदेवं भदंत ! तदेवं भदन्त ! इति ।मु०५।।। हुए हैं, यावत् समस्त दुःखों का अन्त करेंगे क्या ? इसका उत्तर देते हुवे प्रभु गौतम से कहते हैं कि-(हंता गोयमा ! अतीतं अणंतं सासयं समयं जाव अंतं करिस्संति वा ) हां गौतम ! अतीत अनन्त, शाश्वकाल में यावत् अंत करेंगे। ! (से नूणं उप्पणणाणदंसणधरे अरहा जिणे केवली “अलमत्थु"त्ति वत्तव्वं सिया?) अब पूर्ण ज्ञान के विषयमें प्रश्न करते हुए गौतमस्वामी पूछते हैं कि हे भदंत ! क्या ऐसा कहना शक्य है कि जब उत्पन्न केवलज्ञान और उत्पन्न केवलदर्शन वाले अहंत जिन केवली हो जाते हैं तब उन्हें और दूसरा कोई ज्ञान प्राप्त करने योग्य नहीं होता है तो उन्हें पूर्ण ज्ञान कह सकते हैं क्या ? उत्तर में प्रभु कहते है कि (हंता गोयमा! उप्पण्णणाण दंसणधरे अरहा जिणे केवली " अलमत्थु "त्ति वत्तव्वं सिया) हां गौतम ! उत्पन्न केवलज्ञान एवं केवल दर्शनधारी अहंत जिन “ अलमस्तु" पूर्ण ज्ञान वाले हैं, ऐसा कहने के लिये शक्य है। (सेवं भंते सेवं भंते) आप देवानुप्रियने जो कहा है वह ऐसा ही है। પછી સિદ્ધ થયા છે, યાવતુ સમસ્ત દુઃખને અંત કરશે? તેને ઉત્તર આપતાં भगवान गौतमस्वामीन ४ छ -“ हंता गोयमा ! अतीत अणंत सासय समय जाव अंत करिस्संति वा” , गौतम ! मतीत सनत शाश्वत मां यावत मत ४२. “से नूणं भंते ! उप्पण्णणाणदंसणधरे अरहा जिणे केवली " अलमत्थु "त्ति वत्तव्वं सिया ?” हुवे पूर्ण जानना विषयमा प्रश्न २di ગૌતમસ્વામી પૂછે છે કે હે ભગવન્! શું એવું કહી શકાય છે કે જ્યારે ઉત્પન્ન કેવલજ્ઞાન અને ઉત્પન્ન કેવલદર્શનવાળા અહંત જીન કેવલી થઈ જાય છે ત્યારે તેને બીજુ કઈ જ્ઞાન પ્રાપ્ત કરવા લાયક ન હોય ત્યારે તેને શું પૂર્ણ જ્ઞાની કહી શકાય ? तन। उत्तरमा प्रभु ४ छ “हता गोयमा ! उप्पण्णणाणदसणधरे अरहा जिणे केवली "अलमत्थु"त्ति वत्तव्वं सिया" , गौतम ! उत्पन्न वणशान भने अm शनधारी माईत 1 " अलमस्तु" पू ज्ञानवा७॥ छ, मेषु डी शय छे. “सेवं भंते ! सेवं भंते !" उ महन्त ! मा५ हेवानुप्रिये रे ४थु छ तेस' ५ छ, मे छे. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧

Loading...

Page Navigation
1 ... 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879