Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 751
________________ ७२८ भगवतीसने तथाहि हे गौतम ! अतीतेऽनंते शाश्वते काले ते चरमशरीराः सिद्धि प्राप्तवन्तः, शाश्वते वर्तमानकाले चरमशरीराः सिद्धिं यान्ति महाविदेहापेक्षया, तथा अनन्ते शाश्वतेऽनागतकाले तादृशाश्वरमदेहाः समुत्पन्नकेवलज्ञानाः सर्वदुःखानामंतं करिष्यन्तीति । अथ पूर्णज्ञानविषये प्राह-' से नूणं भंते' इत्यादि । ' से नृणं भंते' तद् नूनं भदन्त "उप्पण्णनाणदसणधरे अरहा जिणे केवली अलमत्थु त्ति वत्तव्वं सिया" उत्पन्नज्ञानदर्शनधरः अर्हन जिनः केवली 'अलमस्तु' इति वक्तव्यं स्यात् ?, अलमस्तु पर्याप्तं भवतु-केवलज्ञानादनन्तरं न ज्ञानान्तरं प्राप्तव्य नास्तीत्येतत वक्तव्यं स्यातभवेत् ? उत्पन्नज्ञानदर्शनधरः अहेन् जिनः केवली कि पूर्णज्ञानवान अस्तीति वक्तं " से नूणं" यहां से लगाकर मूत्र की समाप्तितक, कालत्रय का संबंध अवश्य ही लगाकर ऐसा बोलना चाहिये कि-हे गौतम ! अतीत अनंत शाश्वतकाल में वे चरमशरीरधारी सिद्धि को प्राप्त हुए हैं, शाश्वत वर्तमानकाल में वे चरम शरीरधारी महाविदेह क्षेत्रकी अपेक्षा से सिद्धि को प्राप्त करते हैं, तथा-अनंत शाश्वत अनागतकाल में चरमशरीरधारी केवलज्ञान और केवलदर्शन को प्राप्त कर समस्त दुःखोंका अन्त करेंगे। "से नूणं भंते ? उप्पण्णणाणदंसणधरे अरहा जिणे केवली "अलमत्थुत्ति" वत्तव्वं सिया ?" अब पूर्णज्ञान के विषय में प्रश्न करते हुए गौतमस्वामी प्रभु से पूछते हैं कि हे भदन्त! क्या ऐसा कहना शक्य है कि जब उत्पन्न केवलज्ञान और उत्पन्न केवलदर्शनवाले अहंत जिन केवली हो जाते हैं तब उन्हें और दूसरा कोई ज्ञान प्राप्त करने योग्य नहीं होता है क्या?अर्थात् उत्पन्न हुए केवलज्ञान एवं केवलदर्शन धारी अर्हत जिन केवली पूर्णज्ञान “से नूणं " थी २३ ४ीने सूत्रनी समाप्ति सुधी ऋणे आणना समय લગાડીને એવું બોલવું જોઈએ કે હે ગૌતમ ! અનંત અને શાશ્વત એવા ભૂતકાળમાં તે ચરમશરીરધારી કેવલી ભગવંતેએ સિદ્ધ પદ પ્રાપ્ત કર્યું છે, શાશ્વત વર્તમાનકાળમાં તે ચરમશરીરધારી કેવલી ભગવંતે મહાવિદેહ ક્ષેત્રની અપેક્ષાએ સિદ્ધિ પ્રાપ્ત કરે છે. તથા અનંત શાશ્વત ભવિષ્યકાળમાં ચરમશરીરધારી કેવળ જ્ઞાન અને કેવળદર્શનને પ્રાપ્ત કરીને સમસ્ત દુઃખને નાશ કરશે. (से नूण भंते ! उप्पण्णनाणदंसणधरे अरहा जिणे केवली “अलमत्थु" त्ति वत्तव्वं सिया ? )डवे पूर्ण ज्ञानना विषयमा गौतम स्वामी महावीर प्रसने प्रश्न પૂછે છે કે હે પ્રભો! શું એવું કહી શકાય ખરું કે જેમને કેવળજ્ઞાન અને કેવળ દર્શન ઉત્પન્ન થયાં છે એવા અહંત જિન તથા ભગવે તેને બીજું કઈ પણ જ્ઞાન પ્રાપ્ત કરવાનું રહેતું નથી ? એટલે કે તેઓ પૂર્ણ જ્ઞાની છે એમ કહી શકાય ખરું? શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧

Loading...

Page Navigation
1 ... 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879