Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे वा याक्त् सर्वदुःखानामन्तमकाघुर्वा कुर्वन्ति चा करिष्यन्ति वा सर्वे ते उत्पन्न ज्ञानदर्शनपरा अर्हन्तो जिनाः केवलिनो भूत्वा ततः पश्चात् सिद्धयन्ति बुध्यन्ते मुच्यन्ते परिनिर्वान्ति सर्वदुःखानामन्तमकाए॒वा कुर्वन्ति वा करिष्यन्ति वा तत्तनार्थेन गौतम! यावत् सर्वदुःखानामन्तमकार्युः, प्रत्युत्पन्नेऽपि एवमेव, नवरं 'सिद्धयन्ति' भणितव्यम् सरीरिया वा सव्वदुःखाणं अंतं करेंसु वा, करेंति वा, करिस्संति वा, सम्वे ते उप्पण्णणाणदंसणधरा अहा जिणा केवली भवित्ता, तओपच्छा सिज्मंति, बुति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुःखाणं अंतं करेंसुवा, करेंति वा करिस्संति वा) जो कोई अन्तकर हुए हैं, अन्तिम शरीर वाले हुए हैं, यावत् जिहोंने समस्त दुःखों का अन्त कर डाला है, व मान में जो कर रहे हैं, आगे भी जो करेंगे, वे सब उत्पन्न ज्ञान दर्शनधारी अहंत जिन एवं केवली होने के बाद ही सिद्ध हुए हैं, बुद्ध हुए हैं, मुक्त हुए हैं, परिनिर्वृत हुए हैं, उन्होंने ही समस्तदुःखों का अन्त किया है, वे ही करते हैं, और आगे भी वे ही करेंगे। (से तेणटेणं गोयमा !जाव सव्व दुःखाणं अंतं करेंसु) इस कारण हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है कि केवल संयमादिक से किसी भी छद्मस्थ जीवकी सिद्धि नहीं हुई है, न होती है, और न भविष्यत्काल में भी होगी। (पडुप्पन्ने वि एवं चेव ) प्रत्युत्पन्न-वर्तमान काल में भी ऐसे ही जानना चाहिये ऐसा कहा है । (नवरं) विशेषता यह है कि (सिझंति भाणियव्यं) यहां "सिध्यन्ति " इस प्रकार से वर्तमान कालिक क्रिया का प्रयोग कर मंअंत करें सु वा, करिति वा करिस्संति वा, सव्वे ते उप्पण्णणाणदंसणधरा अरहा जिणा केवली भवित्ता तओ पच्छा सिझति, बुज्झति मुच्चंति परिनिव्वायति सव्वदुक्खाणं अंत करेंसु वा, करेंति वा करिस्संति वा "२ मत४२ च्या छ, मन्तिम શરીરવાળા થયા છે, યાવતું જેમણે સર્વદુઃખને અંત કરેલ છે, વર્તમાનમાં જે કરી રહ્યા છે, અને આગળ પણ કરશે તે બધા જ ઉત્પન્ન જ્ઞાનદર્શનધારી અહંત જીન એવં કેવલી થયા પછી જ સિદ્ધ થયા છે, બુદ્ધ થયા છે, મુક્ત થયા છે, પરિનિવૃત થયા છે, તેમણે જ સમસ્ત દુઃખનો અંત કરેલ છે, तमा ४२ छ, मन मा ५५ तेस। । ४२२. “से तेणटेणं गोयमा ! जाव सव्वदुक्खाणं अंत करेंसु" ते १२ गोभम ! में से उऱ्या है કેવળ સંયમાદિથી કઈ પણ વસ્થ જીવની સિદ્ધિ થયેલ નથી. થતી નથી, भने भविष्यमा ५५ थरी नहीं. “ पडुप्पन्ने वि एवं चेव" प्रत्युत्पन्न पतमानमा ५५] orea सेवू से उस छ. “ नवरं" विशेषता मे " सिझति भाणियव्यं" मडिया “ सिध्यंति” से शत पभान
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧