Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीस्त्रे कांक्षामोहनीयं कर्म तत् सर्वात्मना कृतं, न तु देशेन कृतमिति ॥ इतः पूर्वपकरणे 'जीवाणं भंते' इत्यादिना सामान्यतो जीवसंबन्धेन सर्व कथितमिति सामान्यतो विवेचनात् विशेषतो ज्ञानं न स्यादतो विशेषरूपेण विवेचयितुं नारकादिचतुर्विंशतिदण्डकविषये प्रश्नयनाह-'नेरइयाणं भंते इत्यादि । 'नेरइयाणं' नैरयिकाणाम् 'भंते' हे भदन्त ! 'कखामोहणिज्जे कम्मे कडे' कांक्षामोहनीयं कर्म कृतम्-जातम् । नारकजीवैः किं कांक्षामोहनीयं कर्म उपार्जितम् , इति प्रश्नः। भगवानाहकर्म के बांधने में जीव के समस्त प्रदेश सक्रिय होते हैं। इसलिये जीव एक समय में जितना कर्म बांध सकता है उतना सब कर्म वह बांधता है। अथवा “ सव्वेणं " अर्थात् सर्वेण इसका तात्पर्य तथा "जं किंचि" 'यत् किंचित्' इसको तात्पर्य जो कुछ भी इस तरह, जो कुछ भी कांक्षामोहनीय कर्म है, वह सब कर्म जीव के समस्त आत्मप्रदेश द्वारा ही किया गया है । देश से कोई एक भाग से-वह नहीं किया गया है। इससे पूर्व प्रकरण में “ जीवाणं भंते" इत्यादि सूत्र द्वारा सामान्यरूपसे जीव के संबंधको लेकर सब कहा गया है । इस तरह के सामान्य विवेचन से विशेष रूप से ज्ञान नहीं हो सकता है, इसलिये विशेषरूप से विवेचन करने के लिये नारक आदि दंडक के चौवीस विषयमें प्रश्न करते हुए गौतम स्वामी भगवान से पूछते हैं " नेरइयाणं भंते इत्यादि ! हे भदन्त ! नारक जीवों का कांक्षामोहनीय कर्म क्या कृत होता है? अर्थात् नारक जीवों द्वारा कांक्षामोहनीय कर्म क्या उपार्जित किया हुआ होता है ? प्रभुने इस विषय में गौतम से इस प्रकार कहा-" हता! એક પ્રદેશાવગાઢ કર્મ બાંધવામાં જીવના સમસ્ત પ્રદેશ સક્રિય થાય છે. તેથી એક સમયમાં જીવ જેટલાં કર્મ બાંધી શકે છે એટલાં સમસ્ત કમેને તે मांधे छ मथ “ सव्वेणं" मेटले सर्पा, "ज किंचि यत् किंचित् ” मेटस જેટલાં છે તેટલાં બધાં અર્થાત્ સમસ્ત કાંક્ષામહનીયકમ સમસ્ત જીવપ્રદેશ વડે જ કરાયેલ હોય છે-કઈ એક દેશ (ભાગ)થી તે કરાયેલ નથી. આ प्र४२१नी भागना शुभ “जीवाणं भंते" इत्यादि सूत्र द्वारा सामान्य રૂપે જીવના સંબંધમાં બધું કહેવામાં આવ્યું છે.-આ જાતના સામાન્ય વિવેચનથી વિશિષ્ટ જ્ઞાન પ્રાપ્ત થઈ શકતું નથી, તેથી વિશેષરૂપે વિવેચન કરવાને भाटे ना२४ मा २४ ६४ा विषयमा गौतमस्वामी प्रश्न पूछे छे-" नेरइयाणं भंते" त्यादि "3 पून्य ! शुं ना२४ वार्नु मामानीय त डाय છે?” એટલે કે શું નારક જી દ્વારા કાંક્ષામહનીય કર્મ ઉપાર્જિત કરાયેલું
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧