Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिकाटीका श० १ ० ३ सू० २ काङ्क्षामोहनीय कर्मनिरूपणम्
तदुक्तम् - "मोत्तूण सगमबाई, पढमाई ठिईइ बहुयरं दव्वं । सेस विसेसहीणं, जावुकोसंति सव्वासं ॥१॥
छाया - मुक्त्वा स्वकामबाधां प्रथमायां स्थित्यां बहुतरं द्रव्यम् । शेषं विशेषहीनं यावदुत्कुष्टमिति सर्वांसाम् । इति,
एतेषु कृतचितोपचितेषु त्रिषु चत्वारो भेदाः । कर्मणः चयोपचयं प्रदर्श्य उदीरणं दर्शयति- 'उदीरेंमु' उदैरिरन् उदीरितवन्तोऽतीतकाले । 'उदीरेंति' उदीरयन्तिअनेनोदी रणस्य वर्तमानकालस्थितिकत्वं प्रदर्शितम्, 'उदीरिस्संति' उदीरयिष्यन्तिभविष्यत्काले उदीरणां करिष्यन्ति । उदीरणं नाम - अनुदितस्य कर्मणः करण
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दूसरी स्थिति में विशेषहीन- चयहीन - बहुतकम निषेचन करता है। इस तरह यावत् उत्कृष्टस्थिति में विशेषहीन निषेचन करता है। कहा भी है
अपने अबाधाकाल को छोड़कर प्रथमस्थिति में प्रथम समय मेंबहुतर द्रव्य को इसी तरह से यावत् उत्कृष्टस्थिति में अवशिष्ट समस्त को विशेषहीन करता है। इन कृत, चित, उपचित, तीनों में से एक एक के चार-चार भेद हैं । एक सामान्यकाल की क्रिया को लेकर और बाकी के तीन, भूत, वर्तमान और भविष्यत्काल की क्रिया को लेकर है। कर्म के चय और उपचय को दिखलाकर अब सूत्रकार उदीरणा को दिखलाते हैं-" उदीरें " जीवोंने इस कांक्षामोहनीयकर्म की भूतकाल में उदीरणा की है, "उदीरेंति" वर्तमानकाल में वे इस कर्म की उदीरणा करते रहते हैं ।" उदीरिस्संति " भविष्यत्काल में भी वे इसकी उदीरणा
निषेयन ( संयय ) रे छे. त्यार माह मील स्थितिमां विशेषहीन-ययहीन - धागु छु-निषेयन ( संयय ) उरे छे. आ रीते उत्कृष्ट स्थिति सुधीभां विशेषहीन ( धायें मोछु ) निषेशन ( संयय ) उरे छे. उधुं पशुछे
પેાતાના અખાધાકાળને છોડીને પ્રથમસ્થિતિમાં-પ્રથમ સમયમાં-મહુતર દ્રષ્યનું અને એજ પ્રમાણે ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ સુધીમાં બાકીના સમસ્ત કમ દલિકાનું निषेशन (सध्यय) रे छे. या मृत, थित अने उपथित, मेत्रमांना प्रत्येना ચાર ચાર ભેદ છે-એક સામાન્યકાળની ક્રિયાની અપેક્ષાએ અને ખીજા ત્રણ ભેદ ભૂત, વમાન અને ભવિષ્યકાળની અપેક્ષાએ થાય છે. કના ચય, અને उपय्यनुं नि३पण उरीने हवे सूत्रअर हीरणानुं निइयाशु रे छे. “उदीरे सु" જીવાએ ભૂતકાળમાં આ કાંક્ષામાહનીય કમની ઉદીરણા કરે છે. उदीरेति " વર્તમાનકાળમાં તેઓ તે કર્મીની ઉદીરણા કરે છે, " उदीरिस्संति " भने लवि
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
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