Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयनन्द्रिकाटीका श. १ उ. ४ सू० २ उपस्थानापक्रमणस्वरूपम् ६७५ योपतिष्ठेत् , वीर्यतया वीर्ययोगात् उपतिष्ठेत् , तत्र-वीर्यः-वीर्यमस्यास्तीति वीर्यः प्राणी, अर्श आदित्वादच् , तस्य भावो वीर्यता, अथवा वीर्यमेव वीर्यता, अथवा वीर्याणां भावो वीर्यता, तया, तथा च वीर्यमादाय पारलौकिकक्रियासु उपस्थानं कुर्यात् , किं वा 'अवीरियत्ताए' अवीर्यतया वा अविद्यमानवीर्यतया वीर्याभावे नेत्यर्थः. वीर्यस्योपस्थाने कारणत्वं विद्यते न वेति प्रश्नाशयः । वीर्यस्वीकार करता है तो—“ से भंते ! किं वीरियत्ताए उवट्ठावेज्जा " अवीरियत्ताए उवट्ठावेज्जा" वह क्या वीर्यता से उपस्थान करता है ? कि अवीर्यतासे उपस्थान करता है ? भगवान कहते हैं-" गोयमा ! वीरियत्ताए उवट्ठावेज्जा णो अवीरियत्ताए उवद्वाएज्जा" हे गौतम ! वीर्यतासे उपस्थान करता है किन्तु अवीर्यता से नहीं, यहां पर "वीर्यतया" यह छाया वीरियत्ताए " इस पद की है ! “ वीर्यतया " का अर्थ “वीर्ययोगात्" ऐसा लिया गया है । वीर्य अर्थात् प्राणी-“वीर्यम् अस्य अस्तीति वीर्यः" इस व्युत्पत्ति के अनुसार यहां "अर्शादिभ्योऽच्" इस सूत्र से अच् करने पर “वीर्य प्राणी " ऐसा अर्थ वीर्य शब्द का हो जाता है। वीर्य का-जोव का जो भाव है वह वीर्यता है । यह वीर्य भाव-"प्राणिपन" रूप पड़ता है । अथवा "वीयमेव वीयता" ऐसा स्वार्थ में तलू प्रत्यय करने पर " वीर्यता" शब्द बनता है। अथवा "वीर्याणां भावो वीर्यता" वीर्यो का जो भाव वह वीर्यता है। इस वीर्यता से-अर्थात् वीर्य को लेकर-जीव पारलौकिक क्रियाओं में उपस्थान करता है किं वा अवीर्यता से-वीर्याभाव से-अर्थात् अवीर्य को लेकर पारलौकिक क्रियाओं में उपस्थान करता है, वीर्य की उपस्थान में कारस्वीरेछ, तो “से भते । किं वीरियत्ताए उबदावेज्जा अवीरियत्ताए उबदावेज्जा" ते શું વીર્યતાથી ઉપસ્થાન કરે છે? કે અવીર્યતાથી ઉપસ્થાન કરે છે? ભગવાન કહે છે
गोयमा ! वीरियत्ताए उवदावेज्जा णो अवीरियत्ताए उवदावेज्जा गौतम ! वीयताथी उपस्थान ४२ छ. “वीर्यतया” से “वीरियत्ताए” ५४नी छाया छे. “वीर्यतया" सेट "वीर्ययोगात्" वायना योगथी “वीर्यम् अस्य अस्तीति वीर्यः” 21 व्युत्पत्ति अनुसार चाय से प्राणी वो मथ थाय छे. सही "आर्शादिभ्योऽच्या सूत्रथी "अच्" કરવાથી વીર્ય શબ્દને પ્રાણી એવો અર્થ થાય છે. વીર્યને-જીવને જે ભાવ તેનું નામ વીર્યતા છે. તે વીર્યભાવ “પ્રાણીપણું ” એ રૂપે લેવાય છે. અથવા "वीर्यमेव वीर्यता" सेवा सभा “तलु" प्रत्यय नवाथी “वीर्यता" श५४ भने छ. अथवा " वीर्याणां भावो वीर्यता" वीयर्थाना मा तेनु नाम વીર્યતા છે. આ વીયતાથી જીવ પારલૌકિક ક્રિયાઓમાં ઉપસ્થાન કરે છે કે અવીર્યતાથી-વીર્યના અભાવથી પારલૌકિક ક્રિયાઓમાં ઉપસ્થાન કરે છે? ઉપ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧