Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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trafarent श० १ उ० ४ सू० ३ कमवेिदने मोक्षाभावकथनम्
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कस्य वा तिर्यग्योनिकस्य वा मनुष्यस्य वा देवस्य वा यत्कृतं पापं कर्म नास्ति तस्यवेदयत्वा मोक्षः । तत्केनार्थेन भदंत ! एवमुच्यते नैरयिकस्य वा तिर्यग्योनिकस्य वा मनुष्यस्य वा देवस्य वा यत्कृतं पापं कर्म नास्ति तस्यावेदयित्वा मोक्षः ? एवं खलु मया गौतम ! द्विविधं कर्म प्रज्ञप्तम्, तद्यथा- प्रदेश कर्म चानुभाग " नेरइयस्स वा तिरिक्खजोणियस्स वा मणुसस्स वा देवस्स वा" नारक जीव को तिर्यच योनिवाले जीव का, मनुष्य को, और देव को " जे कडे पावे कम्मे, " जो पाप कर्म किये हैं, “ तस्स अवेयइत्ता " उन्हें वेदन किये बिना "नस्थि मोक्खो" क्या मोक्ष-छुटकारा नहीं होता है ? भगवान् उत्तर देते हुए कहते हैं कि " गोयमा " हे गौतम " नेरइयस्स वा नारक जीव का " तिरिक्ख जोणियस्स वा मणुसस्स वा देवस्स वा तिर्यच योनिवाले जीव का मनुष्य का तथा देव का " जे कडे पावे कम्मे " जो कृत पापकर्म है " तस्स अवेइहत्ता मोक्खा नत्थि उसका वेदन किये बिना उस कर्म से छुटकारा नहीं होता है । फिर गौतमस्वामी पूछते हैं "से hणणं भंते एवं बुच्चइ " हे भदन्त ! आप इस प्रकार किस कारण से कहते हैं कि “नेरइयस्स वा तिरिक्खजोणियस्स वा मणुसस्स वा देवस्स वा नारक जीव और तिर्यञ्च मनुष्य और देव को " जे कडे पावे कम्मे " कृत पापकर्म का "अवेयइत्ता मोक्खो नत्थि " वेदन किये बिना क्या मोक्ष नहीं होता है ? उसके उत्तर में भगवान् कहते हैं कि " एवं वा तिरिक्खजोणियस्स वा मणुसस्स वा देवम्स वा” ना२४ वने, तिर्यययोनिवाजा लवने, भनुष्यने अने देवने " जे कडे पावे कम्मे” ले पाय उस छे. " तस्स अवेयइत्ता " तेनुं वेहन र्या विना " नत्थि मोक्खो " मोक्ष छुटारो थतो નથી ? તેનો ઉત્તર આપતાં ભગવાન કહે છે કે " गोयमो " हे गौतम! " नेरइयरस वा નારક જીવના તેમજ " तिरिक्खजाणियरस वा मणुसरल वा देवरस वा " तिर्यय योनिवाणा भुवना मनुष्यना तथा देवना " जे कडे पावे कम्मे " पाय उरेल छे. तरस अवेयइत्ता मोक्खो नत्थि " तेनुं वेहन કર્યા વગર તે કમથી છુટકારા થતા નતી.
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गौतमस्वाभी इरी पूछे छे " से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ अहन्त ! आप या प्रमाणे ज्या अरथी हो छो े " नेरइयस्स वा, तिरिक्खजोणियस्स वा मणुसस्स वा देवस्स वा નારકજીવ, તિર્યંચ, મનુષ્ય અને દેવના " जे कडे पावे कम्मे” ने पारेछे " तस्स अवेयइत्ता मोक्खो नत्थि " તેનો વેદન કર્યા વગર ( ભોગવ્યા વગર) મેાક્ષ થતા નથી. તેનો ઉત્તર આપતાં लगवान उडे छे " एवं खलु मए गोयमा ! दुविछे कम्मे पन्दले "
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧