Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिकाटीका श. १ उ. ३ सू० ३ कर्मावेदने मोक्षाभावकथनम्
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नैरयिकस्य वा तिर्यग्योनिकस्य वा मनुष्यस्य वा देवस्य वा यत्कृतं पापं कर्म नास्ति तस्यादयित्वा मोक्षः ॥ ०३॥
टीका - ' से नूणं भंते' तद् नूनं भदन्त ! 'णेरइयस्स वा' नैरयिकस्य वा 'तिरक्खजोगियस्स वा' तिर्यग्योनिकस्य वा 'मणुसस्स वा' मनुष्यस्य वा 'देवस्स वा' देवस्य वा 'जे कडे पावे कम्मे' यत्कृतं पाप कर्म 'नत्थि तस्स अवेयइत्ता Hirat' नास्ति तस्यावेदयित्वा मोक्षः 'जे कडेत्ति' यत्कर्म कृतम् अर्थात् जीवैर्यस्कर्म स्वात्मप्रदेशेषु बद्धम् । 'पावेकम्मे त्ति' पापं कर्म-मोक्षव्याघातकरं ज्ञानावरणीयादिकम् । कैश्चित् पापं कर्म' इत्यस्य अशुभं कर्म इत्यर्थः कृतस्तन्न शोभनम्, देखा है, उसी उसी तरह से वह परिणमेगा " से तेणडेगं गोयमा ! एवं बुच्चइ नेरयस्स वा तिरिक्ख जोणियस्स वा मणुसस्स वा देवस्स वा जे कडे पावे कम्मे नत्थ तस्स अवेयइत्ता मोक्खो " इस कारण हे गौतम! मैं ऐसा कहता हूं कि नैरथिक तिर्यग्योनिक, मनुष्य अथवा देव इनका जो कृत कर्म है उसके बिना वेदन (भोग) किये मोक्ष नहीं होता है || ३ || टीकार्थ - (जे कडे पावे कम्मे ) जो पापकर्म किये गये हैं (तस्स अवेयहत्ता) उन्हें वंदन किये बिना (भंते) हे भदन्त ! (नेरइयस्स वा, तिरिक्खजोणियस्स वा, मणुसस्स वा देवस्स वा) नारक जीव को तिर्यंच योनिवाले जीव को, मनुष्य को और देव को (नत्थि मोक्खो क्या मोक्ष नहीं होता है । " जे कडे " जो कर्म किये हैं अर्थात् जीवों द्वारा जो कर्म अपने आत्मप्रदेशों में बांधे गये हैं ऐसे " पावे कम्मे पाप कर्म-मोक्ष के व्याघात करने वाले ज्ञानावरणीय आदि कर्म, यहां पाप कर्म से लिये गये हैं । कोई २ " पापकर्म " इस पद का अर्थ "अशुभ कर्म" ऐसा करते हैं । सो
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रीते छेउमा परिशुभशे. " से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ नेरइयरस वा तिरिक्खजोणियस्स वा मणुसरस वा देवरस वा जे कडे पावे कम्मे नत्थि तस्स अवेयइत्ता मोक्खो ” से अरणे हे गौतम! हुं मे प्रमाणे उडु छु }-नैरथिङ, તિય ચૈાનિક, મનુષ્ય અથવા દેવ તેમણે જે કર્મ કરેલ છે તેનું વદન (ભાગ) अर्थावगर मोनो भोक्ष थतो नथी. ॥ सू० 3 ॥
टीअर्थ – (जे कडे पावे कम्मे) ने पाया उशयां डाय छे (तस्स अवेयइत्ता) तेमनु वेहन ऊर्जा विना ( भंते ! ) हे भगवन् ! ( नेरइयस्स वा तिरिकखजोणियस वा, मणुसरस वा, देवरस वा ) नारडीना कवीने तिर्यययोनिनावाने मनुष्याने रखने हेवाने (नत्थि मोक्खो) शुद्ध भोक्ष थतो नथी ? " जे कडे" " उभे यो छे " એટલે કે જીવા વડે પેાતાના આત્મપ્રદેશે સાથે કોના અધ થયેા હૈાય એવાં " पावे कम्मे " पायाभ- भोक्षमां विघ्न नाशं ज्ञानावरणीय आदि अमेनि पापम्भ' मुडेवामां आवे छे, "पापकर्म" पहनो अर्थ डेटलाई बोअ "मशुलम्भ"
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧