Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 704
________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श. १ उ0 ४ सू० २ उपस्थानापक्रमणस्वरूपम् ६८१ जीव उत्तमगुणस्थानकात् हीनं हीनतरं गुणस्थानकं प्राप्नुयात् किमिति प्रश्नः । मोहनीयकमणः प्रभावेण जीवो हीन गुणस्थानकं प्राप्नोत्येवेत्याशयेन भगवानाह "हंता" इत्यादि, 'हंता गोयमा ' हन्त गौतम ! ' अबकमज्जा ' अपक्रामेत् , मोहनीयकर्मण उदये जीवस्योत्तमगुणस्थानकात् हीनगुणस्थानकं प्रति गमनरूपमपक्रमणं भवत्येवेति । तदपक्रमणं कि वीर्येण वा अवीर्येण भवतीत्यभिप्रायेण पृच्छति-' से भंते' इत्यादि । 'से भंते तद् भदन्त ! 'जाव बालपंडियवीरियताए अवक्कमेज्जा' यावत् बालपंडितवीर्यतयाऽपक्रामेत् , अत्र यावच्छब्देनात्र पूर्वोक्त उपस्थानपाठ क्रमोऽनुसन्धेयः तत्रान्ते-'किं बालवीर्यतया अपक्रामेत् , किं पंडितवीर्यतया आक्रामेन्' इति संग्राह्यम् । तथा च-चालयोर्यतया तद् अपक्रमणं किं बालवीयतया भवति पण्डितबीयतया वा भवति, बालपण्डित वीर्यतया वा भवतीति प्रश्नाशयः । भगवानाह–'गोयमा' हे गौतम ! " बालवी जब किया हुआ मोहनीयकर्म उदयप्राप्त होता है तब जीव उत्तम गुणस्थान से हीन हीनतर गुणस्थान को प्राप्त करता है क्या ? ऐसा यह प्रश्न है। मोहनीय कर्मके प्रभावसे जीव हीन गुणस्थान को प्राप्त करता ही है, इस आशयसे भगवान् उत्तर देते हुए कहते है कि (हंता अवकमेजा) हांगौतम! मोहनीयकर्म के उदय में जीव का उत्तमगुणस्थान से हीन गुणस्थान की तरफ गमनरूप अबक्रमण होता ही है । वह अपक्रमण क्या वीयसे होता है या अवीर्यतासे ? इस अभिप्रायसे गौतमस्वामी पूछते हैं कि-(से भंते ! जाव बालपंडिय वीरियत्ताए अवकमेजा ?) हे भदंत ! वह अपक्रमण जीव का यदि वीर्यतासे होता है तो क्या बालवीर्यता से होता है, या पंडितवीर्यतासे होता है या बालपण्डितबीयतासे होता है ? (यहां यावत् शब्दसे पूर्वोक्त उपस्थानके पाठका क्रम जोडना चाहिये, अन्तमें 'किं बालवीर्यतया अपक्रामेत् कि पंडितवीर्यतया अपक्रामेत्' इस पाठका संग्रह हुआ है जो अर्थ करते समय लिख ही दियागया है) यह प्रश्न है। भगवान् ने इसपर गौतम છે શું? જ્યારે કરાયેલ મેહનીય કામ ઉદયમાં આવે છે ત્યારે જીવ ઉત્તમ ગુણસ્થાનમાંથી નીચા ગુણસ્થાનમાં જાય છે ? એવો આ પ્રશ્ન છે. મેહનીય કર્માના ઉદયથી જીવ નીચા ગુણસ્થાનને પ્રાપ્ત કરે છે એ બતાવવાને માટે भगवान महावीरस्वामी सवा५ मा छे 3-(हता अवक्कमेज्जा) , गीतम! મેહનીય કર્મના ઉદયથી જીવ ઉત્તમ ગુણસ્થાનમાંથી હીન ગુણસ્થાનમાં જવા રૂપ અપક્રમણ કરે જ છે. તે અપક્રમણ કયા વીર્યથી થાય છે એ જાણવાને भाटे गौतमस्वामी पूछे छ-(से भंते ! जाव बालपंडियबीरियत्ताए अवकमज्जा १) હે ભગવન! જીવનું તે અપક્રમણ જે વીર્યતાથી થાય છે તે શું બાલવીર્યતાથી થાય છે, કે પંડિતવીર્યતાથી થાય છે કે, બાલપંડિત વીર્યતાથી થાય છે? અહીં " यावत् " ५४थी पूर्वरित उपस्थानन पाइभवन मतभा " किं बालवीर्यतया अपक्रामेत, किं पंडियवीर्यतया अपक्रामेत्” मा पानी ५५ भ०-८६ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧

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