Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिकाटीका श०१३०३ सू०११ प्रकरणोपसंहारः, चतुर्थोद्देशप्रारम्भश्च ६६१ पराक्रम इति सर्व वक्तव्यम् । प्रकरणमुपसंहरन्नाह- सेवं भंते सेवं भंते' इति तदेवं भदन्त तदेवं भदन्त । हे. मदन्त ! देवानुपियेण प्रतिपादितं तत् एवमेव सत्यमेव शङ्कादिरहितमेव च, नात्राणुमात्रोऽपि शङ्कायवकाशः। एवमुक्त्वा गौतमः श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा संयमेन तपसाऽऽ. त्मानं भावयमानो विहरति ॥५०११॥
इति श्री-जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्य श्रीघासीलालतिविरचितायाँ श्रीभगवतीसूत्रस्य प्रमेयचन्द्रिकाव्याख्यायां प्रथम
शतकस्य तृतीयोदेशकः समाप्तः ॥ १-३॥ है, बल है, कर्म है, वीर्य है, पुरुषकार पराक्रम है-ये सब हैं । प्रकरण का उपसंहार करते हुए सूत्रकार कहते हैं कि-सेवं भंते! सेवं भंते।' हे भदन्त ! आप देवानुप्रिय ने जो प्रतिपादित किया है वह ऐसा ही है अर्थात् सत्य ही है और शंका आदि से रहित ही है, इसमें अणुमात्र भी शंका आदिके लिये स्थान नहीं है । इस तरह कहकर गौतमने श्रमण भगवान महावीर को वंदना की, उन्हें नमस्कार किया । वन्दना-नमस्कार करके वे फिर तप और संयम से आत्मा को भावित करते हुए अपने स्थान पर विराज गये ॥ सू० ११ ॥
॥ जैनाचार्य श्री घासीलालजी महाराजकृत 'भगवतीसूत्रकी प्रियदर्शिनी व्याख्याके प्रथमशतक तीसरा उद्देशक समाप्त ॥१-३॥ उत्थान छ, ५छ, म छे, पीय छ, पुरुष।४।२ ५२॥34 छ, से मधु छे. ५४२४ ने। उपस.२ ४२di सूत्र॥२ ४ छ -“ सेव भंते !" उ पून्य ! આપે જે પ્રતિપાદિત કર્યું છે તે સત્ય જ છે. તેમાં શંકાદિ દેને સ્થાન જ નથી." આ પ્રમાણે કહીને ગૌતમસ્વામીએ શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને વંદન નમસ્કાર કર્યા. વંદન નમસકાર કરીને સંયમ અને તપથી આત્માને ભવિત કરતા થકા તેઓ પોતાના સ્થાને બેસી ગયા. સૂ૦૧૧
|| જૈનાચાર્ય શ્રી ઘાસીલાલજી મહારાજકૃત ભગવતીસૂત્રની પ્રિયદર્શિની व्या ध्यान पडसा शतने श्रीन देश सभात ॥१-२।।
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧