Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवती सूत्रे
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वेदप्रकाराः संभवन्ति किन्तु ते एकेन्द्रियाणां कथं संभवन्तीति तेषां वेदनप्रकारप्रदर्शनाय प्राह - " पुदविकाइयाणं भंते' इत्यादि । 'पुढविकाइया णं भंते पृथिवीकायिकाः खलु भदन्त ! किम् 'कंखामोहणिज्जं कम्मं वेति' कांक्षामोहनीयं कर्म वेदयन्ति ? भगवानाह - ' हन्ता वेति' इत्यादि । हंता गोयमा' हन्तगौतम ! 'वेति' वेदयन्ति । संज्ञादिराहित्येन कथमेकेन्द्रियाणां कांक्षामोहनीयकर्मणो वेदनमित्याशयेन पुनरपि पृच्छति - 'कह णं' इत्यादि । ' कह णं भंते ' कथं खलु-केन प्रकारेण भदन्त ! 'पुढविक्काश्या' पृथिवीकायिकाः 'कंवा मोहणिज्जं कम्मंवेएंते' कांक्षामोहनीयं कर्म वेदयन्ति । भगवानाह - ' गोयमे 'त्यादि । 'गोयमा' हे गौतम! 'तेसि णं जीवाणं' तेषां खलु जीवानाम् पृथिवीकायिकामोहनीय कर्म को वेदन करने के शङ्कित आदि जो प्रकार कहे गये हैं वे पंचेन्द्रिय जीवों के ही संभवित होते हैं, एकेन्द्रिय जीवों के वे कैसे संभवित हो सकते हैं ? अतः सूत्रकार उनके वेदनप्रकार दिखलाने के निमित्त कहते हैं-" पुढविकाइयाणं भंते " इत्यादि । हे भदन्त ! पृथिवीकायिक जीवोंके क्या कांक्षामोहनीय कर्मका वेदन होता है ? तब प्रभु कहते हैं कि " हंता वेएंति " हे गौतम! हां उनके कक्षामोहनीय कर्म का वेदन होता है । संज्ञा आदि से रहित होनेके कारण एकेन्द्रिय पृथिवीकायिक जीवों के कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन कैसे हो सकता है ? यही बात - " कह णं " इत्यादि सूत्र द्वारा पूछी गई है, गौतम पूछते हैं कि "भंते ! " हे भदन्त ! " कह णं " किस प्रकार से " पुढविकाइया " पृथिवीकायिक जीव "कंखामोहणिज्जं " कांक्षामोहनीय "कम्मं" कर्म का " वेति " वेदन करते हैं ? उत्तर में भगवान् ने कहा " गोयमा ! વેદન કરવાના શંકા, કાંક્ષા વગેરે જે પ્રકારો કહ્યા છે તે તે માત્ર પંચેન્દ્રિય જીવેાને જ સંભવી શકે છે તે! પછી એકેન્દ્રિય જીવાને તે કેવી રીતે સભવી શકે ? તેથી સૂત્રકાર તેમને જવાબરૂપે પૃથ્વીકાયિક જીવેાના વેદન પ્રકાર વગેરે उडे छे - " पुढविकाइयाणं भंते ! " ઇત્યાદિ. હે પૂજ્ય ! પૃથ્વીકાયિક જીવેા શું अंक्षाभोडुनीय उर्भनुं वेदन उरे छे ? त्यारे प्रभु उडे छे -" हंता वेएति " હું ગૌતમ! હા, તેઓ કાંક્ષામેાહનીય કર્મીનું વેદન કરે છે. સંજ્ઞા આદિથી રહિત હાવાને કારણે એકેન્દ્રિય પૃથ્વીકાયિક જીવા કાંક્ષામેાહનીય કર્મીનું વેઇન કેવી રીતે કરી શકે છે ? એજ વાત कह णं " त्यिाहि सूत्रपाठ वडे पूछवासां भावी छे, गौतम पूछे छे "भंते!" पून्य! " कह णं" देवीरीते " पुढ विकाइया " पृथ्वी अयि वा “कंखामोहणिज्जं कम्मं वेएंति” अंक्षाभोडनीय भनु वेहन १रे छे ? भगवान महावीर स्वामी नवाज आयो “ गोयमा ! " हे गौतम ! " तेसिणं
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧