Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रयमेचन्द्रिकाटीका श० १ उ० ३ सू० ८ काङ्कामोहनीयबंधस्वरूपम् ५५ ___ प्रमादादिपदानामुत्पादकोत्पाद्यशृङ्खलाकथने कि प्रयोजनम् ? इत्याह--' एवं सइ' इत्यादि । एवं सति-शरीरे जीवप्रवहे सति तस्मिन् शरीरे उत्थानादिक्रिया भवति तदेव दर्शयति- 'उट्ठाणेइ वे'-ति, उत्थानमिति वा, तत्रोत्थानमूर्वीभवनरूपश्चेष्टाविशेषः, 'इति' शब्द उपदर्शनार्थकः, 'वा' शब्दो विकल्पार्थकः, समुच्चयार्थको वा । 'कम्मेइ वा' कर्मेति वा, उत्क्षेपणप्रक्षेपणादिरूपम् , भ्रमणादिक्रिया वा, 'वलेइवा' बलमिति वा, बलं शरीरसामर्थ्यम् , 'वीरिएइ वा' वीर्यमिति वा, वीर्य-जीवप्रभवम् । 'पुरिसक्कारपरक्कमेइ वे'ति, पुरुषकारपराक्रम इति वा, पुरुषकर्म की अपेक्षा जीव में प्रधानता है। और “प्रधान को अपेक्षा से व्यवहार हुआ करते हैं" सो इस न्याय के अनुसार शरीर का कारण जीवको कहा गया है । प्रमाद आदि पदों में जो उत्पादक उत्पाद्य श्रेणीका यह कथन किया गया है सो इस कथन में प्रयोजन क्या है ? सो इसके समाधान निमित्त सूत्रकार कहते हैं कि " एवं सइ" इत्यादि, शरीर जीव से उत्पन्न होता है जब ऐसी बात बन जाती है तब ही उस शरीर में उत्थान आदि क्रियाएँ होती हैं, इसी बात को अब सूत्रकार प्रकट करते हैं-" उट्ठाणेइ वा" उर्वीभवनरूप चेष्टाविशेषका नाम उत्थान है। भाषा में इसे “ खड़े होना" कहते हैं। यहां जो "इति" शब्द है, वह उपदर्शनार्थक है। “वा" शब्द विकल्पार्थक या समुच्चयार्थक है । "कम्मेह वा" उत्क्षेपण, प्रक्षेपण आदि रूप कर्म अथवा भ्रमण आदि रूप क्रिया कर्म है। "बलेइ वा" शरीरसामर्थ्यरूप बल है। " वीरिएइ वा" वीर्य-जीवप्रभवरूप शक्ति वीर्य है। "पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा” पौरતેથી કર્મ કરતાં જીવમાં પ્રધાનતા છે, અને “પ્રધાનની અપેક્ષાએ જ વ્યવહાર થયા કરે છે.” તે ન્યાયને આધારે શરીરનું કારણ જીવને ગણ્યો છે. પ્રમાદ આદિ પદમાં ઉત્પાદક-ઉપાદ્યની શંખલાનું જે કથન કરવામાં આવ્યું છે तेमा प्रयोशन शु छ ? तेना समाधान ने भाटे सूत्रा२ ४९ छे छे “एवं सह" ઈત્યાદિ. શરીર જીવથી ઉત્પન્ન થાય છે, એ વાતનું પ્રતિપાદન થઈ ગયું છે. એટલે જ હવે તે શરીરમાં ઉત્થાન આદિ ક્રિયાઓ થાય છે, એ વાતને સૂત્રકાર ४८ २ छ- "उदाणेइ वा" भवन (GAL थq ) ३५ याविशेषतुं नाम स्थान छ. मी " इति" शव ते ५४शन अर्थमा १५२यो छ. "वा" श६ वि४८५ मने समुन्थ्यय Aथना सूय छे. “कम्मेइ वा" SA५४] (ઉપર ફેંકવું), પ્રક્ષેપણ (ચારે બાજુ ફેંકવું) તથા ભ્રમણ વગેરેરૂપ ક્રિયાને ४ ४ामा मावे छे. “बलेइ घा” १२॥ सामथ्यतुं नाम ५ छ. "वीरिएइ वा " थी उत्पन्न यती शतिर्नु नाम वीय छे. "पुरिसकार
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧