Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
________________
प्रमेयचन्द्रिकाटीका श०१ उ० ३ सू० ९ काङ्गामोहनीयस्योपशमादिवर्णनम् ६१७ मेइ' अनुदीर्णम् उपशमयति-उपशमनमनुदीर्णस्यैव भवति, उदीर्णस्य तु वेदनस्यादेवेति तत्रोपशमाभावः । 'सेसा पडिसेहेयया तिण्णि' शेषाः प्रतिषेधयितव्यास्त्रयः पक्षाः, तथा च-नो उदीर्णम् उपशमयति १, नो अनुदीर्णमुदीरणाभव्यं कर्मोपशमयति२, नो उदयानन्तरपश्चात्कृतं कर्मोपशमयति३, एते त्रयः पक्षा वाः । चतुर्थः पक्षः-अनुदीर्णमुपशयतीति स्वीकृतः। 'जं तं भंते' यत् तद् भदंत ! 'अणुदिन्नं उवसामेइ' अनुदीर्णम् उपशमयति-तं किं उट्ठाणेणं जाव पुरिसक्कारहै वह इस प्रकार से है-" अणुदिणं उवसामेइ " कि अनुदीर्ण जो कर्म होता है उसका ही उपशम करता है । उदीर्ण कर्मका उपशमन नहीं होता है। उसका तो वेदन होता है । ' सेसा पडिसे हेयव्या" का तात्पर्य इस प्रकार से है-कि यदि कोई ऐसा प्रश्न करे कि उदीर्ण का उपशम होता है ? कि अनुदीर्ण का उपशम होता है ? अथवा जो अनुदीर्ण उदीरणाभविक कर्म है उसका उपशम होता है ? या कि जो उदयानन्तरपश्चात्कृत कर्म होता है उसका उपशम होता है । इन चार प्रश्नो में से " उदीर्ण का उपशमन नहीं होता है, अनुदीर्ण उदीरणाभविक कर्म का उपशम नहीं होता है, और जो उदयानन्तरपश्चात्कृत कर्म है, उसका उपशम नहीं होता है, इस तरह तीन प्रश्नों का निषेध करके यहां अनुदीर्ण कर्मका उपशमन होता है, ऐसा पक्ष अंगीकार किया गया जानना चाहिये।
प्रश्न-हे भदन्त ! "अणुदिन्न' अनुदीर्ण कर्म का जीव "उवसामेह" उपशमन करता है तो क्या वह उसे “ उढाणेणं " उत्थान से करता है ? ५] मही मेटशी विशेषता छ । “ अणुदिण्णं उवसामेइ ” मनुही भने ઉપશમ કરે છે. પણ ઉદીર્ણ કમને ઉપશમ થતું નથી તેનું તે માત્ર વેદન જ थाय छे. " सेसा पडिसे हेयव्वा " ॥ सूत्रनुं २ प्रमाणे ५य छे. अध એવે પ્રશ્ન કરે કે ઉદીને ઉપશમ થાય છે? કે અનુદીને ઉપશમ થાય છે? કે અનુદીર્ણ ઉદીરણાભવિક કમને ઉપશમ થાય છે? કે ઉદયાનન્તરપશ્ચાદ્ભુત કર્મને ઉપશમ થાય છે ? તે તેને આ પ્રમાણે જવાબ છે-“ઉદીને ઉપશમ થતું નથી, અનુદીર્ણ ઉદીરણાભવિક કર્મને પણ ઉપશમ થતું નથી, તેમજ ઉદયાનન્તરપશ્ચાતકૃત કર્મને પણ ઉપશમ થતો નથી. આ રીતે ત્રણ પ્રશ્નોને નિષેધ કરીને, “અનુદીર્ણ કર્મને જ ઉપશમ થાય છે એ પ્રશ્નને સ્વીકાર કરવામાં मान्यो छ, सेभ सभ:
प्रश्न- भून्य! " अणुदिन्नं" ने ०१ मनु मना “ उवसामेइ" उपशम ३२ छ तो शु०१ ते ५म “ उटाणेणं " उत्थानथी ४२ छ१ ३ भ ७८
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧